पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४३१

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२७६ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास कृष्णजिन्होंने साक्षात् दर्शन दिए,' की परम्परा पर आधारित वल्लभ द्वारा स्थापित ‘पुष्टि मार्ग'-प्रसन्नता का मार्ग-नामक नवीन संप्रदाय के सिद्धान्तों का अध्ययन करना मेरा विषय है, संप्रदाय जिसका प्रधान उद्देश्य बालकृष्ण की भक्ति करना है। इसके अतिरिक्त में श्री विल्सन द्वारा हिन्दुओं के धार्मिक संप्रदायों पर किए गए वित्तापूर्ण कार्य‘एशियाटिक रिसर्च की जि० १६८४ तथा बाद के पृष्ठ, का केवल अनुकरण कर सऊंगाइसलिए मैं पाठक का ध्यान उस ओर दिलाना चाहता . मेरे लिए यह कहना यथेष्ट है कि वल्लभविष्णु के उपलक्ष्य में, विष्णु पद' शीर्षक ब्रजभाखा बंदरों के रचयिता हैं; वे ‘वात’ या ‘बातों' शीर्षक एक हिन्दुस्तानी ( बोली ब्रजभाषा ) रचना, जो संप्रदाय के गुरु और उनके पवित्र वैष्णव प्रधान शिष्यों से संबंधित अलौकिक कथाओं का संग्रह है, के नायक भी हैं। ( शिष्यों की ) संख्या चौरासी है, उनमें स्त्री-पुरुष दोनों सम्मिलित हैं, और वे हिन्दुओं की सभी श्रेणियों के हैं। इस अंतिम रचना से लिए गए उद्धरण स्वर्गीय विल्सन ’ के सुन्दर विवरण में पाए जाते हैं, जिनके पास ‘बार्ता की एक प्रति है; वह नागरी अक्षरों में लिखी हुई अठखेजी जिल्द . " - उसी रचना में विस्तार देखिए, ३८ तथा बाद के पृष्ठ, तथा हिन्दुओं के धार्मिक संप्रदायों पर स्वर्गीय विल्सन के विवरण में, ‘पशियाटिक रिसर्बज़' की जि० १६, ८४ तथा बाद के पृष्ठ। .२ फलतः इस ग्रंथ का शीर्षक भी ‘चौरासी बार्ता’ या ‘चौरासी वैष्णव' है। उससे ‘हिस्ट्री ऑव दि लैक्ट गव दि महाराजा ' में उद्ध रण मिलते हैं, ६५ तथा बाद के ठ । 3 ‘एशियाटिक रिसचेंजमें, जि० १६, ६५ तथा बाद के पृष्ठ ४ उसका एक ४३५ अठखेजी पृष्ठों का संस्करण बेसम परगना इनल्स (Iglds १ इगलास अ० ) के राजा द्वारा प्रकाशित हुआ , १८७०।