पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४३३

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२७ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास २५, ‘शरणार्शक ४४. ‘नित्य-सेवाप्रकार २६, ‘नामावली-आाचार जी' ४५. रसभाधना’ २७. ‘भुजंगप्रायणाष्टक’ ४६, बल्लभाख्यान । २८. ‘नामावली गुसांई जी’ ४७. ‘ढोला’ २४. सिद्धान्त-भावना’ ४८‘निज-' ३८, सिद्धान्त-रहस्य' ४६. चौरासी वार्ता ३१. विरोध लक्षण ५०. ‘रस-भावनावार्ता' ३२. ‘गर-रसमण्डल ’ ५१. ‘नित्य पद ३३. ‘वैधवल्लभ ५२. श्री जी प्रागट ३४. ‘अग्नि कुमार ५३. चरित्र-सहिता-वार्ता' ३५. शरणउपदेश' ५४. गुसांई जी प्रागट’’ ३६रस्ससिं’ ५५. 'आष्ट कविय’ ( Kaviya ) ३७. ‘कल्पद्रम’ * ५६. ‘शाबली ३८ मालाप्रसंग' ५७. ‘वनयात्रा' या ‘बनजात्रा' ३.. चितप्रबोध’ ५१ लीलाभवनाश' ४०. ‘पुष्टिदृढ़वार्ता’ ५.. स्वरू-भावन’ ४१. ‘द्वादशकुंज ६०. गुरू सेवा में ४२. पत्रिमएडल ६१. चितवन' ४३. पूर्ण सामी' ६२. ‘सेवाप्रकार’ ' १ मैं नहीं जानता यदि यह वही रचना है जिसका उल्लेख मैंने जैसिंह पर लेख में किया है। ३ में महीं जामता यदि यह वही रचना है जो इसी शीर्षक की बात ( Bakut) कृत है, और जिसका उल्लेख कर्नल टॉड के 'पेनट्स व राजस्थान' में हुआ हैं । ३ शुरु की भक्ति' 1 इस रचना में, जिसका एक उद्धरण ‘ट्रिी व दि सेक्ट ऑष महाराजा, १० ८४ में मिलता है, यह बताया गया है कि मनुष्यों की रक्षा करने की शकि मैं, गुरु स्वयं हरि ( ईश्वर ) से बड़ा होता है ।