पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४३९

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"२८४] हिंदुई साहित्य का इतिहास १३२ अठपेजी पृष्ठों के दो भाग । स्वभावतः दृष्टिकोण भिन्न होने के कारण मुसलमानों ने इस ग्रंथ की आलोचना की है। । २२. आईना-इ तारीखनुमा’ ( १८६८ - ऊपर बाली रचना की। अनुबाद और जो अँगरेजी में भी निकली है ). २३. ‘तारीन चीन ओो जपान' ( एल० ओलीट कृत एलगिन के १८५७१८५६ के मिशन का उर्दू में विवरण- एफ़० नैन्डी और शीश प्रसाद द्वारा अनूदित - १८६७ ) - २४. कुछ बयान अपनी जुबान का’ हमारी बनक्यूलर-२४ छोटे आठपेजी पृष्ठ ; २५. ‘शहादत छुरानी बर कुतुब रब्बानी’ ( अरबी और उर्दू में १८६० ) ...... सिधप्रसादनवल किशोर प्रेसलखनऊ, से मुद्रिस उर्दू पत्र ‘अवध अख़बार’ के, जिसके नवल किशोर संचालक हैं, और जिनके सहारा मानसिंह के भवन में अपने प्रेस हैं, संपादक हैं। यह पत्र २४ से ८२तक छोटे फ्रोलिओ पृष्ठों की प्रतियों में दो कॉलमों में साप्ताहिक रूप में निकलता है, और उसमें प्रथः सिबप्रसाद की कविताएँ मिल जाती हैं, अन्य के अतिरिक्त पहली और १५ दिसंबर, १८६८ के अंों में, जिनसे उनका वह तखल्लुस मालूम हो जाता है जिसे मैंने लेख के शुरू में रखा है । २६. श्री० एफ़० ई० हज द्वारा अपनी ‘हिन्दी प्राइमर’ में उल्लिखितहिन्दी में, दमयंती की कथा २७बीसिंह की कथा ( श्री एफ़० ई० हाल के उच्चारण के अनुसार, ‘बीर सिंह’ )। रेवरेंड जे० लौंग ने अपने ‘Selections from the Reco १ में नहीं जानता यदि ये बहो सिव प्रसाद हैं जो नूर नजर'—दृष्टि का प्रकाश शीर्षक, गुलंदशहर के साप्ताहिक उर्दू पत्र के संपादक हैं ।