पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४४२

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चिलत २८७ और उस नगर पर अधिकार कर लिया । उस शहर का वर्णन करते समय बीच में जैन धर्म की प्रशंसा की गई है। हिरण्यपुर का राजाश्रीकण्ठउसके सिद्धांतों की व्याख्या करता और रोचक कथाओं से उन्हें स्पष्ट करता है। । इसी कारण यह अंतिम भाग, जिसमें इस संप्रदाय के नौ प्रधान तत्वों का प्रतिपादन हुआ है, नबपद महिमा, अथवा नौ शब्दों की श्रेष्ठता, कहा जाता है । मिर्जा लुक अली विला," जिनका दूसरा नाम ‘मजहर अली खाँ विला’ में है, सुलेमान अली खाँ, जिनका नाम मिर्जा मुहम्मद जमन बददभी है, के पुत्र और इस्पान के निवासी मुहम्मद हुसेन उपनाम ‘अली कुली वाँ’ के प्रपौत्र थे । वे हिन्दु- तान के एक प्रसिद्ध लेखक हैं , दिल्ली के रहने वाले, जहाँ वे एक महत्वपूर्ण पद पर थे । काव्यक्षेत्र में वे प्रसिद्ध उर्दू -कवि, मिर्जा जान तपिश के, और यहाँ दी गई सूचनाओं का मु एक भाग देने बाली जीवनी के लेखक, मसहफ़ी, के भी, शिष्य थे। उस समय जब कि यह पिछली लिखी जाती थी, बिलाअपनी रचनाओं के संबंध में मीर निजामुद्दीन मार्गों से परामर्श करते थे। १८१४ में वे कलकते में रहते थे । बेनी जो उनसे विशेषतः नारायण ने, परिचित थे, उनकी बारह' कविताएँ उद्धृत की हैं । ये लेखक हैं: ( अन्य उर्दू रचनाएँ)' , ४. उन्होंने १२१५ हिजरी ( १८०१ ) में, श्री लल्ल जीई की १ मित्रता, आदि २ जैताल पचोली' की भूमिका में इस प्रकार लिखा गया है । . 3 प्यारह प्रधान रचना में, और फक परशष्ट मैं । ४ दे० इस लेक पर लेख