पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४४६

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शंकरदास [ २१ जो स्वप्न में लाखों पवित्र स्थानों में स्नान करने से भी नहीं मिल संकताबह विष्णु के भक्तों की शक्ल देख लेने से मिल जाता है; बह उसन्न होकर मुश्किल से मिटता है । यह सुख वह नहीं है जो एक पवित्र और स्नेहंशीला स्त्री के हृदय में मिलता है । जब किसी को यह मिल जाता है, तो विष्णु के भक्तों की बातें सुनकर उनके अधू प्रवाहित होने लगते हैं । इस सुख की समता घर में पत्रजन्म की प्रसन्नता भी नहीं कर सकती। अंत में, साधुसंगत का सुखऔर उनके प्रति इर्दक प्रेम ग़रीप के ग्रास के लिए लंका औौर मेस के वैमब से अच्छा है । ।' ज्वाला प्रसाद ने आगरे से, १८ पृष्ठों के छोटे फ़ोलिओ रूप में, यास जो और मनु कृत बताए जने वाले ‘धर्म प्रकाश -धार्मिक नियम का प्रकाश के दो संस्करण निकाले हैं, अर्थात् संस्कृत और हिन्दी में, तथा संस्कृत और उर्दू ” में अगहन मास (संवत १६२४ वर्ष की जनवरीफरवरी(१८६८) के उजियारे पक्ष में धर्म कृत्य करने की व्याख्या के आर बही प्रकाशत फागुन (-), चैत्र (मार्चअप्रैल ), जेठ (अप्रैलमईआदि महीनों के लिए । शंकर-दास ' सिक्खों के एक इतिहास ( ‘Origin of the Sikh power in the Penjab and political life of Maharaja Runjeet Singh, with an account of the present condition, religionlaws and custome of the Sikhs' ) के रचयिता हैं, जिसकी समीक्षा दिल्ली क लेज के राम चन्द ने की है । शैत्र संग्रादय के हिन्दी रचयिता हैं । मैं यह बता चुका हूं कि १ भा५ शिव का दास' २ भग’ बता’