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हिंदुई साहित्य का इतिहास

वे अश्लीलता से दूषित हैं,[१] या अंत में क्योंकि वे ऐसे अलंकारों से भरे हुए हैं जिन्हें यूरोपीय पाठकों के लिए समझना असम्भव है।[२]

हिन्दुई रचनाओं से लिए गए उद्धरण, जो 'भक्तमाल' से लिए गए हैं, जितने महत्त्वपूर्ण हैं उतने ही अधिक रोचक हैं, क्योंकि उनमें उल्लिखित अधिकतर हिन्दू सन्त उनके शिष्यों द्वारा सुरक्षित धार्मिक हिन्दुई कविताओं के रचयिता हैं, और जिनके उद्धरण इस पुस्तक में पाए जायँगे।

'प्रेम सागर' पर मैंने विस्तार से दिया है, क्योंकि यह रचना वस्तुतः अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। उसके पद्य हिन्दुई में हैं, और शेष के प्राचीन रूपान्तर हैं, या संभवतः वे परंपरा द्वारा सुरक्षित लोकप्रिय भजनों के अंश हैं। गद्य अधिक आधुनिक शैली है, और लगभग सामान्य हिन्दी में है[३]; किंतु वह अत्यन्त सुन्दर और प्रायः लयात्मक है।


  1. एक बात ध्यान देने योग्य है, कि फ़ारस और भारत के अत्यन्त प्रसिद्ध मुसलमान रचयिताओं, जिन्हें संत व्यक्ति समझा जाता है, जैसे, हाफ़िज़, सादी, ज़ुरत, कमाल, आदि लगभग सभी ने अश्लील कविताएँ लिखी हैं। मुसलमानों के बारे में वही कहा जा सकता है जो संत पॉल ने मूर्तिपूजकों के बारे में कहा है : 'Professing themselves to be wise, they become fools... God gave them up...to uncleanness through the lusts of their own hearts" (Epistle to the Romans. 1, 22)
  2. मैं इसलिए और भी नहीं दे रहा, क्योंकि मेरी पहली जिल्द के निकलने के बाद वे प्रकाशित हो चुके हैं। जैसे आसाम का इतिहास है, जिसके मैंने उद्धरण नहीं दिए, क्योंकि श्री पैवी (Th Pavie) ने हाल ही में उसका एक सुन्दर अनुवाद प्रकाशित किया है; और मिस्कीन कृत मर्सिया, जिसके संबंध में मैंने, अपने अत्यन्त प्रसिद्ध शिष्य में से एक, मठधारी श्री बरत्राँ (I'abbé Bertrand), को 'गुल-इ मगफिरात', जिसे उन्होंने 'les séances de Haidari' शीर्षक के अंतर्गत फ़्रेंच में निकाला है, के बाद प्रकाशित करने का अधिकार दिया है।
  3. उचित रूप में कही जाने वाली हिन्दी और हिन्दुई के अंतर के लिए, देखिए मेरी 'Rudiments de la langue hindoui' (हिन्दुई भाषा के प्राथमिक सिद्धान्त), पृ॰ १०।