पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४५१

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२६ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास मैं नहीं कह सकता कि ‘सन्त सरन' इस सय रचनाओं के संग्रह का नाम है । जो कुछ भी हो, इस अंतिम रचना की तीन फोलिओ जिदों में एक हस्तलिखित प्रति विद्वान प्रोफेसर विलसन के पास है । उसमें शिवनारायणी हिन्दी कविताएँ और पद हैं; वह नागरी अक्षरों में लिखी हुई है । उनकी एक बारहवीं है, जो अन्य सब की कुंजी है किन्तु अभी तक उसे किसी ने नहीं देखा ; बढ़ संप्रदाय के गुरु के निजी अधिकार में रहती है । यह व्यक्ति गाजीपुर जिले में बल सन्ट ( Balasand ) में रहता है, जहां एक पाठशाला और प्रधान केन्द्र है ।' इस महापुरुष के एक धार्मिक गीत का पाठ और उसका आबाद ‘एशियाटिक जर्नल२ में मिलता है । यह गीत उनके संप्रदाय के अनुयायियों में लोकप्रिय हो गया है, और जो हमें भारत के पालकी उठाने वाले से ज्ञात हुआ है । कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं : 'मेरे दोस्तो, ईश्वर की दी हुई चीजों का गान करो । सदैव के लिए मानवी श्रम छोड़ दो, अपनेपन से घृणा करोसाधुसंगति में रहो, महापुरुषों के साथ रहो मैं अपने हाथ से बजा कर खुशी में टोल ऑौर झाँ की ध्वनि उत्पन्न करों ... यदि तुम छपने को सुधारना चाहते हो, तो विश्वास की धर्म की तलवार लो और संसारिक ऋमों को काट डालो... संतो से श्राद्ध प्राप्त करने में, शिव नारायण-दाप्त द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चल ने में विलंत्र मत करो १ मट्टगोमरी मार्टिन (Mchtg. Martin, ईरटर्म इन्डिया(ast. India) जि० २, ५० १३७ २ जि० ३, तोसरी म ला g० ६३७१८४४