पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४५३

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२८ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास ऐंड माइथॉलजी अब दि हिन्दू, एसीट’, शीर्षक, रचना, जि० २, ४० ४८०, में उल्लिखित हिन्दी पुस्तक ‘कादिलअली ( Phiditali ) प्रकाश के रचयिता । क्या यह रचयिता सुखदेव मिश्र तथा साथ ही कवि रा’ नामक हिन्दू लेखक ही तो नहीं है जिसका इलाहाबाद प्रान्त के प्राचीन नगर, ओरछा, के राजा के अंतर्गत, १६ वीं शताब्दी में आविर्भाव हुआ ? मर्दन नामक इस राज के आश्रय में ही इस कवि ने साहित्य-सेवा की उसकी रचनाएँ हैं : १. ‘रसाऍ ‘या रसाबशीर्षक छन्दोबद्ध रचना जिसका संबंधजैसा कि शीर्षक से ज्ञात होता है, काव्य तथा नाटक-संबंधी रसों से है. २‘पिंगललंद-हिंदी, साथ ही जिसका शीर्षक ‘भाषा पिंगल। है, और जिसका उल्लेख राग सागर द्वारा हुआ .। यह रचना बनारस से टिप्पणियों सहित, बाबू अविनाशी लाल और मुंशी हरबंश लाल के व्यय से मुद्रक गोपीनाथ द्वारा, १८६४२३२३ पंक्तियों के ५४ अठपे जी पृष्ठ, और १८६५१६१६पंक्तियों के १०० अठपेजी पृष्ठ, में प्रकाशित हो चुकी है । विल्सन के सुन्दर संग्रह्म में उसकी नागराक्षरों में एक प्रति थी । इस प्रसिद्ध रचयिता . के सघंध में मैं जो सूचनाएँ यहाँ दे रहा हूं उसके लिए मैं उक्त विद्वान भारतीयविद्याविशारद का कृत हैं; ३. .‘रस रत्नाकर -रस का समुद्र, बनारस, १८६६२२२२ पंक्तियों के ३२ अठपेजी पृष्ठ, हाशिए पर टिप्पणियों सहिंत; ' लिखित प्रति में यह नाम ‘सुख-आनन्द [ तालध्य (?—अनु० ) ‘' सहित जिसे प्राय: ‘' का जाता है ] है । जहाँ तक ‘दे' या देवशब्द से संबंध है, यह याँ एक आदरमूक उपाधि है जो हिन्दुओं के नामों के अंत में ‘साहिल' को तर है, जो प्रायः मुसलमान नारों के साथ लगाया जाता है। १ यह रचना गोपाल चन्द्र कृत भी बताई जाती है। देखिए उन पर लेख ।