पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४५७

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३०२ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास सरा के, कहे जाने वाले नागरी अक्षरों में सराफों के बही खाते रखने की विधि बताई गई है । वह १८५७ में आगरा और इलाहा बाद से मुद्रित ई है, १७ अपेजी पृष्ठ । २, ‘पत्र मालिका’ पत्रों की माला ( सरल पत्र लेखनविधि - Easy letter writer )-के, दो भागों में हिन्दी पत्रों की छोटी पुस्तक, १८५०१८५१ में आगरे के एक ही छापेखाने में मुद्रित थी। ये दोनों रचनाएँस्कूलों के बड़े निरीक्षक, एच० एस० रीड द्वारा देशी स्कूलों के लाभार्थ प्रकाशित हुई हैं । श्री लाल की पत्र मालिका’ शीर्षक से ही एक अत्यन्त छोटी पुस्तक भी है, जो प्रत्यक्षतः पहली वाली का संक्षिप्त रूप है, और जिस का मेरे पास इलाहाबाद, १८६० का पाँचवाँ संस्करण है । ३. ‘धर्म ( या धरम) सिंह का वृत्तान्त--सिंह की कथा- के । यह कथा श्री एच० एस० रीड : Reid ) के कहने से, बच्चों की शिक्षा के लिए ‘क्स्सिा धर्म सिं’ शीर्षक के अंतर्गत पहलेपहल उर्दू में लिखी गई थी, और उसकी कई बार कईकई हजार प्रतियाँ मुद्रित हुई ; उदाहरण के लिएसातवीं बार, दस हजार इलाहाबाद, १८६८, १२ पृष्ठ । इस पुस्तक का मूल विचार श्री जॉन म्योर का दिया हुआ है । उर्दू रूपान्तर चिरंजी लाल का किया हुआ है, और उसका शीर्षक्र है धर्म सिंह का क़ि हरसा’ - धर्म सिंह की कथा ।' इस पुस्तक में एक नीतिकथा है जिसका नायक धर्म सिंह नामक एक जमींदार है, जो अपने सह्यवहार से यशोषार्जन करने में सफल होता है, किन्तु अपनी लड़की के विवाहोपलक्ष्य में अपव्यय कर पीड़ित होता है; और अंत में दिखाया गया है। १ ‘आगरा गवर्नमेंट गज़ट, पहली जून, १८५५ का अंक