अनुवादों में मिलने वाले कुछ ऐसे अंशों के लिए जिनमें कैथलिक ईसाई मत से सार्म्थ न रखने वाले विचार पाए जा सकते हैं विरोध प्रकट करना मेरा कर्तव्य है, और लोग यह याद रखें कि मैं उनका एक साधारण अनुवादक हूँ।
इस इतिहास की पहली जिल्द की भूमिका में, मैंने हिन्दुस्तानी साहित्य के काल-क्रम का उल्लेख किया है, और साहित्यिक, इतिहास-लेखक, दार्शनिक के लिए उसका महत्त्व बताया है। इस समय मैं इस साहित्य की रचनाओं के वर्गीकरण, और उसके विशेष विविध रूपों के सम्बन्ध में बताना चाहता हूँ।
हिन्दुई में केवल पद्यात्मक रचनाओं के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिलता। सामान्यतः चार-चार शब्दांशों (Syllable) के ये छन्द दो लययुक्त चरणों में विभाजित रहते हैं। किन्तु साधारण गद्य, या लययुक्त गद्य, में भी रचनाएँ हैं, जैसे हिन्दुस्तानी में, किन्तु अधिकतर प्रायः पद्यों से मिश्रित जो सामान्यतः उद्धरणों के रूप में रहते हैं।
यदि हम, श्री गोरेसिओ (Gorresio) द्वारा 'रामायण' के अपने सुन्दर संस्करण की भूमिका में उल्लिखित, संस्कृत विभाजन का अनुगमन करें, तो हिन्दी-रचनाएँ चार भागों में विभाजित की जा सकती हैं।
१. 'आख्यान', कहानी, क़िस्सा। इनसे वे कविताएँ समझी जानी चाहिए जिनमें लोकप्रिय परंपराओं से संबंधित विषय रहते हैं, और कथाएँ पद्यात्मक, कभी-कभी, फ़ारसी अक्षरों में लिखित, छंदों के रूप में, रहती हैं, यद्यपि लय मसनवियों की भाँति हर एक पद्य में बदलती जाती है।
२. 'आदि काव्य', अथवा प्राचीन काव्य। उससे विशेषतः 'रामायण' समझा जाता है।
३. 'इतिहास', गाथा, वर्णन। ऐतिहासिक-पौराणिक परंपराओं में ऐसे अनेक हैं, जैसे 'महाभारत' तथा पद्यात्मक इतिहास।
४. अंत में 'काव्य', किसी प्रकार की काव्यात्मक रचना। इस वर्गगत