पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४७३

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३१८ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास सुरत कबीश्वर ने मुहम्मद शाह के राजस्वकाल में, और जयपुरनरेश जैसिंह सिवई, वही जिन्होंने फ्रांस और पुर्तगाल के राजाओं को कुछ विद्वान् भेजने के लिए लिखा था और जिन्होंने यूकलिडे (व्यामिति ) के मूल सिद्धान्तों का संस्कृत में अनुवाद कियाकी औोझा से ‘बैताल पचीसीओ का ब्रजभाषा में अनुवाद किया। ‘वेताल पब्वबिंशति’ शीर्षक संस्कृत मूल के रचयिता शिवदास हैं : किन्तु वह स्पष्टतः आश्राष्य है, क्योंकि परिश्रमी हिन्दू काली कृष्ण ने इस रचना का अँगरेजी अनुवाद ब्रजभाषा पाठ के आधार पर किया है वे कथाकहानियों का यह संग्रह बृहत् कथा, या बड़ी कथा, शीर्षक एक प्राचीन संस्कृत कथाकहानियों के अधिक बड़े और अत्यन्त प्रसिद्ध संग्रह का एक भाग ही है । ‘सिंहासन बत्तीसी' ( संस्कृत में 'सिंहासन द्वार्जिशति’ ) अर्थात् जादुई सिंहासन की बत्तीस कहानिय, और हितोपदेश के बड़े भागऔर ‘पंचतंत्र५ का संबंध भी उसी से है । वृहत् संग्रह सोमदेव ई कृत है , उसका संकलनऐसा प्रतीत होता है, हमारे सन् की १२ वीं शताब्दी में हुआ । इस विशाल संग्रह का एक संक्षित रूप विद्यमान है : १ अर्थात् ‘कवियों का राजा, यहां मुसलमानों का ‘मलिक उपशुअरा’ है। २ ‘एशियाटिक रिसों’, जि० १०, ४० ३ 3 लल्लू पर लेख देखिए ४ 6 बैताल पचीसी', अथवा बैताल की पचीस कथाएँप्रजभाषा से गैंगरेली में अनूदितकलकता, १८३४आठवेजो। ५ यूजेन बनौंफ़ ( Eagene Burnouf , ‘जून सावां ’ ( Journal des Savants ) १८३३, ४० २३६ । ‘कथा' का विश्लेषण ‘यलकाता।

. मन्थली मैजिनवर्ष १८२४ और १८२५ में दिया गया है । यह विश्लेषण
: ‘एडिन्बरा नैगेज़ीन, जुलाई १८२५ के अंक, में उद्धृत है।

थ विल्सन कृत संस्कृत डिक्शनरी ( कोष ) के प्रथम संस्करण की भूमिका, ३० ३०४ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास के जन्म और विकास तथा हिन्दो और फारसी से उसके संबंध पर हिन्दी में लिखित वह एक रूपरेखा है । ८. ‘गणित प्रकाश ’ -गणित की रोशनी हिन्दी में, जिसके कई संस्करण हो चुके हैं, कुछ लीथो के, कुछ मुद्रित वह चार भागों में गणितसंबंधी पुस्तक है, जिसके तीसरे और चौथे भाग इस संपादन के सइयोगियों बंसीधर और मोहन लाल द्वारा 'मबादी उलु हिसाबके आबाद हैं। है. 'छेत्र' या क्षेत्र चन्द्रिका'- खेत से संबंधित चमकती किरणें एच० एस० रीड द्वारा संपादित और श्री लाल द्वारा हिन्दी में अनूदितभूमि नापने आदिआदि की विधि-सम्बंधी दो भागो में हिन्दी पुस्तक । उसके आगरे आादि, से कई संस्करण हो चुके हैं : छठा बनारस का है, १८४५, आठपेजी । पंडित बंसीधर ने अपनी तरफ से उसका मिस्बाह उल मसाहत’– क्षेत्र विज्ञान का दीपक --शीर्षक के अन्तर्गत उर्दू में अनुवाद किया है । १०. सूरजपुर की कहानी'- सूरजपुर की कथा इसी आर्थ के शीर्षक, निरसा-इ शम्साबाद: का अनुबाद । एच० एस० रीड द्वारा सर्वप्रथम लिखित और प० श्री लाल की सहायता द्वारा हिन्दी में अनूदितयह प्रामीण जीवन का एक चित्र है। उसका उद्देश्य एक नैतिक कथा के माध्यम द्वारा जमींदारों और किसानों के अधिकारों और भूमि-सम्पत्ति संबंधी बातें बताना है, तथा १ ‘ए भिज़ न सर्वेपार्ट टैं, मेनसुरेशन के सेकण्डप्लेन टेनिक पाट सयिंग' मैं उसका एक संस्फर ण पंजाबी में, किन्तु उडांअर्थात् फ़ारसी अक्षरों में हाफ़िकें लाहौरी का दिया हुआ हैं मैं दिल्ली, १६८, १६ अठपेजों एवं ।


३०४ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास के जन्म और विकास तथा हिन्दो और फारसी से उसके संबंध पर हिन्दी में लिखित वह एक रूपरेखा है । ८. ‘गणित प्रकाश ’ -गणित की रोशनी हिन्दी में, जिसके कई संस्करण हो चुके हैं, कुछ लीथो के, कुछ मुद्रित वह चार भागों में गणितसंबंधी पुस्तक है, जिसके तीसरे और चौथे भाग इस संपादन के सइयोगियों बंसीधर और मोहन लाल द्वारा 'मबादी उलु हिसाबके आबाद हैं। है. 'छेत्र' या क्षेत्र चन्द्रिका'- खेत से संबंधित चमकती किरणें एच० एस० रीड द्वारा संपादित और श्री लाल द्वारा हिन्दी में अनूदितभूमि नापने आदिआदि की विधि-सम्बंधी दो भागो में हिन्दी पुस्तक । उसके आगरे आादि, से कई संस्करण हो चुके हैं : छठा बनारस का है, १८४५, आठपेजी । पंडित बंसीधर ने अपनी तरफ से उसका मिस्बाह उल मसाहत’– क्षेत्र विज्ञान का दीपक --शीर्षक के अन्तर्गत उर्दू में अनुवाद किया है । १०. सूरजपुर की कहानी'- सूरजपुर की कथा इसी आर्थ के शीर्षक, निरसा-इ शम्साबाद: का अनुबाद । एच० एस० रीड द्वारा सर्वप्रथम लिखित और प० श्री लाल की सहायता द्वारा हिन्दी में अनूदितयह प्रामीण जीवन का एक चित्र है। उसका उद्देश्य एक नैतिक कथा के माध्यम द्वारा जमींदारों और किसानों के अधिकारों और भूमि-सम्पत्ति संबंधी बातें बताना है, तथा १ ‘ए भिज़ न सर्वेपार्ट टैं, मेनसुरेशन के सेकण्डप्लेन टेनिक पाट सयिंग' मैं उसका एक संस्फर ण पंजाबी में, किन्तु उडांअर्थात् फ़ारसी अक्षरों में हाफ़िकें लाहौरी का दिया हुआ हैं मैं दिल्ली, १६८, १६ अठपेजों एवं ।