पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४७४

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सूरत कबीश्वर [ ३१६. उसका शीर्षक है कथा सरित् सागर, अर्थात् कथाओं की नदियों का समुद्र। मैं नहीं जानता यदि पचीसी’ का सुरत द्वारा रूपान्तर बतात वही है जिसका उल्लेख बॉर्ड ने, वेताल पचीसी’ शीर्षक के अन्तर्गतअपने हिन्दुओं के साहित्य, आदि का इतिहासजि० २, ष्ठ , में किया है । इसके अतिरिक्त इस रचना के साथ-साथ ‘सिंहासन बत्तीसी’ के भी, जिसका अभी उल्लेख किया गया है, भारत की कई आधु- निक भाषाओं में रूपान्तर विद्यमान हैं। इस विषय पर मैंने ‘ दे साव’ (Journal des Savants, १८३६, पृष्ठ ४१४ ) में महाराजा काली कृष्ण की रचनाओं पर अपने लेख में जो कुछ कहा है वह देखिए । बैताल पचीसी’ का संस्कृत मूल लुप्त नहीं हो गया । श्री लांसेम (Lassen) ने अपने प्राथमिक संस्कृत संग्रह में संस्कृत और लेटिन में उसे प्रकाशित किया है । उसका एक कलकर्मो का १८३३ संवन् और १७३१ शक-संवत् का भी एक संस्करण है, छोटा चोपेजी और १८१६ से वही, ‘एशियाटिक जर्नल’ १ में प्रकाशित होने वाले श्वेताल पचीसी' के एक अनुवाद में, जो संस्कृत मूल से किया गया। बताया गया है, किन्तु लोग उसके हिन्दी अनुवाद को ही अधिक पसन्द करते हैं , जो अधिक पूर्ण और अपेक्षा कृत अधिक अच्छी और लोकप्रिय शैली में मिलता है । यूछिनगेन ( Tubingen ) के पुस्तकालय में 'सिंहासन बत्तीसी’ की संस्कृत में एक हस्तलिखित प्रति है, जिसकी श्री रौथ (Roth ) ने प्रतिलिपि ली है और ‘जून एसियातीक' (Journal Asiatique) में उसका विवरण दियाँ है ।' - जि० २, ३० २७ और जि० ४६ पृ० २२० ३ सितंबर और अक्तूबर, १८४५ ३०४ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास के जन्म और विकास तथा हिन्दो और फारसी से उसके संबंध पर हिन्दी में लिखित वह एक रूपरेखा है । ८. ‘गणित प्रकाश ’ -गणित की रोशनी हिन्दी में, जिसके कई संस्करण हो चुके हैं, कुछ लीथो के, कुछ मुद्रित वह चार भागों में गणितसंबंधी पुस्तक है, जिसके तीसरे और चौथे भाग इस संपादन के सइयोगियों बंसीधर और मोहन लाल द्वारा 'मबादी उलु हिसाबके आबाद हैं। है. 'छेत्र' या क्षेत्र चन्द्रिका'- खेत से संबंधित चमकती किरणें एच० एस० रीड द्वारा संपादित और श्री लाल द्वारा हिन्दी में अनूदितभूमि नापने आदिआदि की विधि-सम्बंधी दो भागो में हिन्दी पुस्तक । उसके आगरे आादि, से कई संस्करण हो चुके हैं : छठा बनारस का है, १८४५, आठपेजी । पंडित बंसीधर ने अपनी तरफ से उसका मिस्बाह उल मसाहत’– क्षेत्र विज्ञान का दीपक --शीर्षक के अन्तर्गत उर्दू में अनुवाद किया है । १०. सूरजपुर की कहानी'- सूरजपुर की कथा इसी आर्थ के शीर्षक, निरसा-इ शम्साबाद: का अनुबाद । एच० एस० रीड द्वारा सर्वप्रथम लिखित और प० श्री लाल की सहायता द्वारा हिन्दी में अनूदितयह प्रामीण जीवन का एक चित्र है। उसका उद्देश्य एक नैतिक कथा के माध्यम द्वारा जमींदारों और किसानों के अधिकारों और भूमि-सम्पत्ति संबंधी बातें बताना है, तथा १ ‘ए भिज़ न सर्वेपार्ट टैं, मेनसुरेशन के सेकण्डप्लेन टेनिक पाट सयिंग' मैं उसका एक संस्फर ण पंजाबी में, किन्तु उडांअर्थात् फ़ारसी अक्षरों में हाफ़िकें लाहौरी का दिया हुआ हैं मैं दिल्ली, १६८, १६ अठपेजों एवं ।


३०४ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास के जन्म और विकास तथा हिन्दो और फारसी से उसके संबंध पर हिन्दी में लिखित वह एक रूपरेखा है । ८. ‘गणित प्रकाश ’ -गणित की रोशनी हिन्दी में, जिसके कई संस्करण हो चुके हैं, कुछ लीथो के, कुछ मुद्रित वह चार भागों में गणितसंबंधी पुस्तक है, जिसके तीसरे और चौथे भाग इस संपादन के सइयोगियों बंसीधर और मोहन लाल द्वारा 'मबादी उलु हिसाबके आबाद हैं। है. 'छेत्र' या क्षेत्र चन्द्रिका'- खेत से संबंधित चमकती किरणें एच० एस० रीड द्वारा संपादित और श्री लाल द्वारा हिन्दी में अनूदितभूमि नापने आदिआदि की विधि-सम्बंधी दो भागो में हिन्दी पुस्तक । उसके आगरे आादि, से कई संस्करण हो चुके हैं : छठा बनारस का है, १८४५, आठपेजी । पंडित बंसीधर ने अपनी तरफ से उसका मिस्बाह उल मसाहत’– क्षेत्र विज्ञान का दीपक --शीर्षक के अन्तर्गत उर्दू में अनुवाद किया है । १०. सूरजपुर की कहानी'- सूरजपुर की कथा इसी आर्थ के शीर्षक, निरसा-इ शम्साबाद: का अनुबाद । एच० एस० रीड द्वारा सर्वप्रथम लिखित और प० श्री लाल की सहायता द्वारा हिन्दी में अनूदितयह प्रामीण जीवन का एक चित्र है। उसका उद्देश्य एक नैतिक कथा के माध्यम द्वारा जमींदारों और किसानों के अधिकारों और भूमि-सम्पत्ति संबंधी बातें बताना है, तथा १ ‘ए भिज़ न सर्वेपार्ट टैं, मेनसुरेशन के सेकण्डप्लेन टेनिक पाट सयिंग' मैं उसका एक संस्फर ण पंजाबी में, किन्तु उडांअर्थात् फ़ारसी अक्षरों में हाफ़िकें लाहौरी का दिया हुआ हैं मैं दिल्ली, १६८, १६ अठपेजों एवं ।