पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४७६

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सूरदस [ ३२१ जो स्वयं संगीतज्ञ थे, के पुत्र किन्तु जो अक्रूरके अवतार समझे जाते हैं। उनका जन्म १४५० अंकसंवत् ( १५२८ ई) में हुआ तथा सोलहवीं शताब्दी उत्तरार्द्ध, और सत्रहवीं शताब्दी के प्रथम पच्चीस वर्षों में अक्बर के राज्यान्तर्गत उनका उत्कर्ष हुआ ।सूरदास अंधे थे, उन्होंने बैष्णव फकीरों के एक पंथ की स्थापना करेंजो उनके नाम के आधार पर ‘सूरदासी’ या सूरदास पंथी कहे जाते हैं ।वे अनेक लोकप्रिय गीतों, विशेषतहिन्दुई में, विभिन्न लंबाई के, सामान्यत: छोटे, धार्मिक भजनों के रचयिता हैं । इन गीतों की प्रथम पंक्ति में विषय संकेतित रहता है, और उसी की कविता के अंत में पुनरावृत्ति होती है । ये कविताएँजो साधारणतः विष्णु की प्रशंसा में हैं, जिसकी संख्या सवा लाख बताई जाती है, साधा रणतवैष्णव फकीरों द्वारा गाई जाती हैं । सूरदास बिशन पद’ ( या विष्णु पद' ) के आविष्कर्ता हैं, विष्णु, जिनके प्रति उनकी अगाध भक्ति थी, के उपलक्ष्य में एक प्रकार का पद । अंधे साधु इस कवि के रचे हुए राधाकृष्ण बंधी भजन आने वाद्ययंत्रों पर गाते हैं । उनकी कविताओं के संग्रह का, जो, विचित्र बात है, फारसी अक्षरों में लिखा हुआ है, शीर्षक ‘सर सागर’ या ‘बाल लीला १ कृष्ण के पितृव्य तथा मित्र । २ ‘एशियाटिक रिस चेंज’, जि० १६, ७ ४८ 3 प्राइस ने 'हिन्दी ऐंड हिन्दुस्तानी सेलेक्शन्स' में हिन्दी के लोकप्रिय गीतों के रूप में उनके अनेक (गोत) उद्धृत किए है। ४ साथ ही, यह ‘संगोत राग कल्पद्ममें देवनागरी अक्षरों में प्रकाशित हुआ है। कलकते और बनारस के कुछ संस्करण हैं जिन पर अँगरेज़ी में ‘Songs in praise of krischna है। ' अर्थात् सूर ( दास ) का सागर ६ इस संग्रह की हस्तलिखित प्रति में, जो ईस्ट इंडिया हाउस के पुस्तकालय में फ० -२१ ३०४ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास के जन्म और विकास तथा हिन्दो और फारसी से उसके संबंध पर हिन्दी में लिखित वह एक रूपरेखा है । ८. ‘गणित प्रकाश ’ -गणित की रोशनी हिन्दी में, जिसके कई संस्करण हो चुके हैं, कुछ लीथो के, कुछ मुद्रित वह चार भागों में गणितसंबंधी पुस्तक है, जिसके तीसरे और चौथे भाग इस संपादन के सइयोगियों बंसीधर और मोहन लाल द्वारा 'मबादी उलु हिसाबके आबाद हैं। है. 'छेत्र' या क्षेत्र चन्द्रिका'- खेत से संबंधित चमकती किरणें एच० एस० रीड द्वारा संपादित और श्री लाल द्वारा हिन्दी में अनूदितभूमि नापने आदिआदि की विधि-सम्बंधी दो भागो में हिन्दी पुस्तक । उसके आगरे आादि, से कई संस्करण हो चुके हैं : छठा बनारस का है, १८४५, आठपेजी । पंडित बंसीधर ने अपनी तरफ से उसका मिस्बाह उल मसाहत’– क्षेत्र विज्ञान का दीपक --शीर्षक के अन्तर्गत उर्दू में अनुवाद किया है । १०. सूरजपुर की कहानी'- सूरजपुर की कथा इसी आर्थ के शीर्षक, निरसा-इ शम्साबाद: का अनुबाद । एच० एस० रीड द्वारा सर्वप्रथम लिखित और प० श्री लाल की सहायता द्वारा हिन्दी में अनूदितयह प्रामीण जीवन का एक चित्र है। उसका उद्देश्य एक नैतिक कथा के माध्यम द्वारा जमींदारों और किसानों के अधिकारों और भूमि-सम्पत्ति संबंधी बातें बताना है, तथा १ ‘ए भिज़ न सर्वेपार्ट टैं, मेनसुरेशन के सेकण्डप्लेन टेनिक पाट सयिंग' मैं उसका एक संस्फर ण पंजाबी में, किन्तु उडांअर्थात् फ़ारसी अक्षरों में हाफ़िकें लाहौरी का दिया हुआ हैं मैं दिल्ली, १६८, १६ अठपेजों एवं ।


३०४ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास के जन्म और विकास तथा हिन्दो और फारसी से उसके संबंध पर हिन्दी में लिखित वह एक रूपरेखा है । ८. ‘गणित प्रकाश ’ -गणित की रोशनी हिन्दी में, जिसके कई संस्करण हो चुके हैं, कुछ लीथो के, कुछ मुद्रित वह चार भागों में गणितसंबंधी पुस्तक है, जिसके तीसरे और चौथे भाग इस संपादन के सइयोगियों बंसीधर और मोहन लाल द्वारा 'मबादी उलु हिसाबके आबाद हैं। है. 'छेत्र' या क्षेत्र चन्द्रिका'- खेत से संबंधित चमकती किरणें एच० एस० रीड द्वारा संपादित और श्री लाल द्वारा हिन्दी में अनूदितभूमि नापने आदिआदि की विधि-सम्बंधी दो भागो में हिन्दी पुस्तक । उसके आगरे आादि, से कई संस्करण हो चुके हैं : छठा बनारस का है, १८४५, आठपेजी । पंडित बंसीधर ने अपनी तरफ से उसका मिस्बाह उल मसाहत’– क्षेत्र विज्ञान का दीपक --शीर्षक के अन्तर्गत उर्दू में अनुवाद किया है । १०. सूरजपुर की कहानी'- सूरजपुर की कथा इसी आर्थ के शीर्षक, निरसा-इ शम्साबाद: का अनुबाद । एच० एस० रीड द्वारा सर्वप्रथम लिखित और प० श्री लाल की सहायता द्वारा हिन्दी में अनूदितयह प्रामीण जीवन का एक चित्र है। उसका उद्देश्य एक नैतिक कथा के माध्यम द्वारा जमींदारों और किसानों के अधिकारों और भूमि-सम्पत्ति संबंधी बातें बताना है, तथा १ ‘ए भिज़ न सर्वेपार्ट टैं, मेनसुरेशन के सेकण्डप्लेन टेनिक पाट सयिंग' मैं उसका एक संस्फर ण पंजाबी में, किन्तु उडांअर्थात् फ़ारसी अक्षरों में हाफ़िकें लाहौरी का दिया हुआ हैं मैं दिल्ली, १६८, १६ अठपेजों एवं ।