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भूमिका

नाम से, जो पूर्वी मुसलमानों के नज़्म के समान है, हिन्दुई की वे सभी छोटी-छोटी कविताएँ समझी जाती हैं जिनकी मैं शीघ्र ही समीक्षा करूँगा।

तीसरे भाग में पद्य-मिश्रित गद्य की कहानियाँ रखी जानी चाहिए, विशेषतः कहानियों और नैतिक कथाओं के संग्रह, जैसे, 'तोता कहानी' (एक तोते की कहानियाँ), 'सिंहासन-बत्तीसी' (जादुई सिंहासन); 'बैताल-पचीसी' (बैताल की कहानी), आदि।

राजाओं को सत्य बताने के लिए, पूर्व में, जहाँ उनकी इच्छा ही सब कुछ होती है, उसका खण्डन करना एक कठिन कार्य है। इसी बात पर कवि दार्शनिक सादी का कहना है कि यदि सम्राट् भरी दुपहरी को रात बताए तो चाँद-तारे देखना समझ लेना चाहिए। तब उस समय इन कोमल कानों तक सत्य की आवाज़ पहुँचाने के लिए कल्पित कथाओं का आश्रय ग्रहण किया जाता है। इसी दृष्टि से नैतिक कथाओं की उत्पत्ति हुई, जिनसे बिना किसी ख़तरे के अत्याचारियों को शिक्षा दी जा सकती है, जिससे वे कभी-कभी लाभान्वित हुए हैं। देखिए फ़ारस के उस राजा को जिसने अपने वज़ीर से, जो पशुओं की बोली सुन कर नाराज़ होता था, पूछा कि दो उल्लू, जो उसने साथ-साथ देखे थे, आपस में क्या बातचीत करते हैं। निर्भीक दार्शनिक ने उत्तर दिया 'वे कहते हैं कि वे आप के राज्य पर मुग्ध हो गए हैं; क्योंकि वे आप के अत्याचारी शासन में प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले खँडहरों में अपनी इच्छा के अनुसार शरण ले सकते हैं।' वास्तव में हम देखते हैं कि पूर्वी कथाओं में राजनीति सर्वोच्च स्थान ग्रहण किए हुए है, और उनका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भाग है। भारतीय कहानियों और नैतिक कथाओं के ख़ास-ख़ास संग्रहों के ज्ञान से इस बात की परीक्षा की जा सकती है। उनमें कथाओं के अत्यन्त प्रवाहपूर्ण रूपों के बीच में बुद्धि की भाषा मिलती है; क्योंकि, जैसा कि एक उर्दू कवि ने कहा है, 'केवल शारीरिक सौन्दर्य ही हृदय नहीं हरता, लुभा लेने वाली मधुर बातों में और भी अधिक आकर्षण होता है।'