पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३२६ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास हर नारायण’ एक सामयिक कवि हैं जिनकी एक हिंदुस्तानी राजल १३ माच, १८६६ के लाहौर के कोहेनूरमें पाई जाती है । ‘भागवत' के ग्यारहवें स्कंध के फ़ारसी अक्षरों में हिन्दी अनुवाद, आनन्द सिंध'—आनन्द का समुद्र —शीर्षक रचना भी उन्हीं की है २७८ अठपेजी पृष्ठ, दिल्ली, १८६८। हर राय जी वल्लभ के शेियने ब्रजभाख में लिखी हैं : १. सड़सठ पापों, अपने गुरु के सिद्धान्तानुसार, उनके प्राय श्चितों और उनके फलोंपर एक रचन , हिस्ट्री ऑच दि सैक्ट ऑव दि महाराजाज' महाराजों के संप्रदाय का इतिहास, पृष्ठ ८२, में उसके कुछ उद्धरण पाए जाते हैं । २. ‘पुष्टि प्रधान मर्याद-चलती रहने वाली वंशावली की शान-शीर्षक रचना पर एक टीका, जिसका एक उद्धरण उसी रचना४० , में पाया जाता है । हरि चन्दर या हरिश्चन्द्र ( बाबू ) बनारस के, गोपाल चन्द्र के पुत्रअब तक आप्रकाशितप्रसिद्ध हिन्दी कविताओं के प्रकाशन के मासिक संग्रह, और जिसकी प्रथम प्रति अगस्त, १८६७ में प्रकाशित हुई‘हरि बचन सुधा’ कबियों के वचनों का अत के संपादक हैं। ये मासिक संग्रह, जो प्रत्येक १६ बड़े छठवेजी पृष्ठ के होते हैं, बाद में जिल्दों के रूप में बँध जाते हैं। जो मुझे प्राप्त हुए हैं उनमें श्री देवदत्त द्वारा १ भा० शिवऔर विष्णु' ई इस रचयिता के नाम के हिज्ने रि राय जो भी हैंकिन्तु जो हिज्जे मैंने लिके हैं मुमे वे ही ठोक मांलूम होते हैं ।