पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४९०

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परिशिष्ट १ [ ३३९ ‘एकबिंशति स्थान, इक्रीस श्रेणियाँ । जैन रचना, भाषा में ‘एशियाटिक रिसर्जेज,’ जि० १७, ए०,२४४ । ‘ओल्ड टेस्टामेंटहिन्दुई में। लशिंगटन, कलकर इंस्टीट्यूशन्स, अपेंडिक्स, ७० ७(vi) ! कथाएँ, नागरी अक्षार - कलकत्ता। कल्प केदार’ । शीर्षक जिसका अर्थमेरे विचार से‘पविन आदेशों का क्षेत्र है । यह एक तांत्रिक या तंत्र ( एक प्रकार का जादू ) संबंधी रचना है । वह माखा में लिखी हुई है। श्री विल्सन के पहले उसकी एक प्रति है । अकल्प सूत्र। जैन र बना जिसमें संसार के वास्तविक युग के अंतिम तीर्थंकर या जिन, महावीर, तथा अन्य तीर्थकरों के जन्म और कायरें की, उलटे क्रम से, अंतिम की पहले, कथा है ; और साथ ही उनमें से अनेक के वंशजों और शिष्यों की, जैसे ऋषभनेमिनाथ और महवीर । महावीर अत्यन्त प्रसिद्ध जैन प्रचारक हैं । अनुमान किया जाता है कि वे ईसवी सन् से पूर्व छठो शताब्दी में, बिहार प्रान्त में रह ते थे । ग्रंथ के अंत में जैनधर्म मानने वालों के लिए कर्त्तव्यों का उल्लेख है ( एच० एच० विल्सन, मैकेन्ज़ीज़ कैलौग, जि० २, ० ११५ तथा ‘संस्कृत डिक्शनसे)। ‘कवि प्रकाश’ 1 बॉर्ड द्वारा हिस्ट्री, लिटरे , एसीटरा नॉव दि हिन्दू ज' ' ( देिन्दु श्रों का इतिहास, साहित्य आदि ), जि० २, ७० ४८२ में उल्लिखित कनौज की बोली में रचना।