पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४९५

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३४० ] हिंदुई साहित्य का इतिहास का एक रूपान्तर है किन्तु यह अठारह भागों में विभाजित है, जब ; कि मनु के ग्रन्थ में केवल बारह हैं ।

  • -लीला' ।

कनौज की बोली में रचना, वॉर्ड द्वारा उल्लिखित‘हिस्ट्री, लिटरेचर, एसीट आंव दि हिंन्ज़’ ( हिन्दुओं का इतिहास, साहित्य, आदि ), जि० २, ३० ४८२ । नाम साला’ ( फ़ारसी लिपि )। फ़रजांध कुली के पुस्तकालय के सूचीपत्र में इस रचन, जो एक शब्द-संग्रह है, यदि शीघ्रक का , जैसा कि मेरा विश्वास है, नामों का हार’ है, की तीन इस्तलिखित प्रतियों का उल ख है । तीन हस्तलिखित प्रतियों में से एक का शीर्षक रिसाला-इ नाम मालाके: , अथॉ नाम माला की पुस्तक है ।

  • ‘मृसिंहोपनिषद्' ।

इसी नाम के उपनिषद्, श्रर जो ‘अथर्ववेद’ का अंतिम भाग है, का नौ खण्डों में अनुवाद । उसमें जीवन और मात्मा , प्रणव ( Pranava ) के स्वरूप या रतूस्यमय शब्दांश ‘ब्रह्म’ तथा अक्षर ; , जिनसे उसका निर्माण हुआा है , व्यक्ति की सत्ता और विश्वास में। मेद का निरूपण है । इस कथा के चरित्र जितने रहस्यमय हैं उतने : ही पौराणिक मैं उसमें वैदिक की अपेक्षा तांत्रिक पद्धति का आधिक है। यूनुगमन किया गया है। (एच० एच० विल्सन, ‘मैकेन्जी कलेक्शन' जि २, ७० ११० )। " न्यू टेस्टामेंट’ ( दि ), आदिमार्टिन के उर्दू अनुवाद से कलकता मिज़लियरी बाइबिल सोसायटी के संरक्षण में रेवरेंड ' ' डब्ल्यूट वाले द्वारा हिन्दुई भाषा में किया गया = कलकत्ता, ग२ ठपेजी शः 0 . . .