पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/४९७

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३४२ J हिंदुई साहित्य का इतिहास स्तानी लिखने के लिए बहुत प्रयुक्त होती है। यह अंतिम संस्करण कलकते से १८२५ में छपा है ; दोनों में बारपेजी बीस पृष्ठ हैं । पुरुषार्थ सिद्धोपायण'। संवत् १८२७ में, जैपुर में अमृत चन्द सूरी द्वारा लिखित जैन पुस्तक में श्री विल्सन के पास इस रचना की एक प्रति है । ‘पूजा पद्धति, पूजा विषयक कर्मकांड । भाषा में लिखित जैन धर्म की रचना ( ‘एशि० रिस०', जि० १७, पृ० २४४)। ‘अलंकार सिंगार' ( फ़ारसी लिपि )। इस शीर्षक का अर्थ ‘अ लंकारों पर पुतकर प्रतीत होता है। उसका उल्लेख फ़रजद के पुस्तकालय के हस्तलिखित ग्रन्थों में हुआ है। 'पोथी बुक तीला’ ( फारसी लिपि )। मैं इन शब्दों के उच्चारण के संबंध में निश्चित नही हैं, और फलतः, उनके अर्थ के संबंध में । प्रस्तुत पोथी का उल्लेख फ़र बंद । कुली की पुस्तकों के सूची में है । ‘पोथी छत्रमुकुट’ ( फ़ारसी लिपि )। यदि मैंने ठीक पढ़ा है तो इस शीर्षक का अर्थ है, ‘राजकीय : ... तंत्र और मुकुट को पुस्तक', फ़रज़ाद के पुस्तकालय की हस्तलिखित

पोथी।

पिोथीं जंगत बिलास’ (फ़ारसी लिपि), संसार के आनंदों की पुस्तक? फ़रज़ाद कुंली के पुस्तकालय की हस्तलिखित पोथी । ‘वोथी प्रीति बाल’ ( फारसी लिपि )। सुसंद बर्देश के पुस्तकालय की हस्तलिखित पोथी ।