पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५००

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परिशिष्ट १ [ ३४५ पुस्तकें (les livres prophatiques) हैं पाँचवी में, नया नियम है । ‘बाइबिल’-—सिशनरी बी० शुल्ज द्वारा हिन्दुस्तानी में अनूदित । इस रचना को एक इस्तलिखित प्रति, दो चौपेजी जिदों में, बर्लिन के राजकीय पुस्तकालय में हैं, न० १६० और १६१। इस सूचना के लिए मैं प्रोफेसर फ़िलन (Vilken) का अनुगृहीत . । ‘बालविबोध ' । बवाल = चा, और विबोध = ज्ञान । जैन धर्म के सिद्धान्तों और वाह्याचारों पर, भाषा में, एक प्रकार की प्रश्नोत्री विल्सन‘एशिया टिंक रिसचेंज, जि० १७९ २४४)। ¥बिजयपाल रासा, अर्थात् बिजयपाल की गाथा । वियाना ( Biana ) के इस प्रसिद्ध सम्राट के संबंध में, उसके शौर्य, उसक्री विजयों औौर उसकी प्रेमकथानों पर ब्रजभाखा कविता (जे० एस० लशिंगटन‘जर्नल नॉव दि एशियाटिक सोसायटी भव कैलकटा, १८३३३० २७३)। ¥बिरह बिलास, प्रेम के आनन्द (शब्दार्थ, प्रेम के अभाव में )। फ़ोर्ट विलियम कॉलेज के पुस्तकालय की हस्तलिखित पोथी, नागरी अक्षरों में लिखित । ‘बेल (Bel) शत पाठशाला बैठाबने की रीति, एम० टी० डम द्वारा हिन्दुई में अनूदितस्कूल बुक सोसायटी द्वारा प्रकाशित -- कलकत्ता, १८३४ । भारतीय मूर्तिपूजा का खण्डन: इटैलियन में प्रत्येक पंक्ति के दुहरे अनुवाद सहित, जिनमें से एक, शब्द प्रति शब्दु, पंछल शताब्दी के लगभग उत्तरार्द्ध में पी० कटौ डा बो ( P. Costauro da Borgo) द्वारा किया गया । -१ जिल्द, २७० पृष्ठों की चौपेजी । रोम में, प्रोपैगाँद (Propagande) के बोर्जिया (Borgia)