३७६ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास के शिशु बोध'’ - हिंदुई रीडर ।- कलकत्ता, १८३८, १८४६ और १८५१, ३ जिल्दबारपेजी। ‘संगीत धू का’ -की प्रशंसा में कविता के हिन्दी में ।- दिल्ली, १६८३६ सोलहपेजी पृष्ठ । 'सनीचर की कथा’ - सनीचर का वर्णन, उसके आदर में पद्य ; हिन्दुतानी में ।- आगरा, १८६०, १० सोलहपेजी । सभा बिलास- सभा के आनंद। जि० २, ५० २३२ में उल्लिखित रचना के अतिरिक्त, कई और संग्रह हैं जिनका यही शीर्षक है । । एक, गरेज़ी में, Read- ings in poetry’ शीघंक सहित, रेवरेंड डब्ल्यू वाले का है, आगरास्कूल बुक सोसायटी में एक दू मरादेवनागरी छत' में जॉन
- पार्टी तेडली (John Parks Ledlie) का है, नागर, १८५७
७२ अठपेजो पुट, और अन्त में एक डब्ल्यू९ प्राइस का , कलकत्ता, १८२८, अठपेजी । उन सत्र में हिन्दी की चुनी हुई कघितानों के अंश हैं । समान’ ( Saman )- तैयारी । उत्तरपश्चिम प्रदेश के स्कूलों के लाभार्थी हिन्दी व्याकरण व : ‘सरस रस' - शुद्ध रस । रंग सागर द्वारा अपने संगीत रारा कल्प रूम’ में उल्लिखित हिन्दुई रचना । साँच लीला’ - सलुवा , रवि राय कृत । उदर -पश्चिम प्रदेश के स्कूलों के लिए प्रकाशित हिन्दी कविताएँ। ‘सिंगार' या ‘गार संग्रह’- सजावट का संग्रह ( काव्य पर एक
- हिन्दी रचना ), हिन्दी कविताएँ - बनारस १८६५, :
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