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भूमिका


'मुक्री', एक प्रकार की पहेली जिसका एक उदाहरण मैंने अपने 'हिन्दुस्तानी भाषा के सिद्धान्त' की भूमिका में दिया है, पृ॰ २३।

'रमैनी', सारगर्भित कविता। इस शीर्षक की कविताओं की एक बहुत बड़ी संख्या कबीर की काव्य-रचनाओं में पाई जाती है।

'रसादिक', अर्थात् रसों का संकेत। यह चार पंक्तियों की एक छोटी शृंगारिक कविता है; यह शीर्षक बहुत-से लोकप्रिय गीतों का होता है।

'राग', हिन्दुओं के प्रधान संगीत-रूपों और मुसलमानों की ग़ज़ल से मिलती-जुलती एक कविता का नाम, और जिसे 'राग पद'––राग संबंधी कविता––भी कहते हैं। अन्य के अतिरिक्त सूरदास में उसके उदाहरण मिलते हैं।

'राग-सागर'––रागों का समुद्र––एक प्रकार की संगीत-रचना (Rondeau) को कहते हैं जिसका प्रत्येक छन्द एक विभिन्न राग में गाया जा सकता है, और 'राग-माला'––रागों की माला––चित्रित किए जाने वाले रूपकों सहित विभिन्न रागों से सम्बन्धित छन्दों के संग्रह को।

'राम पद', चरणार्द्धों के अनुसार १५-१५ शब्दांशों का छंद, राम के सम्मान में; जैसा कि शीर्षक से प्रकट होता है।

'रास', कृष्ण-लीला का वर्णन करने वाला गान होने से यह नाम दिया गया है।

'रेख़तस', कबीर की कविताएँ, जिनका नाम, हिन्दुस्तानी कविताओं के लिए प्रयुक्त, फ़ारसी शब्द रेखतः––मिश्रित––से लिया गया है।

'रोलाछन्द'। बाईस लंबी पंक्तियों की, इस नाम की कविता से, 'महाभारत' के हिन्दुई रूपान्तर में, 'शकुन्तला' का उपाख्यान प्रारम्भ होता है।

'विष्नु पद', विकृत रूप में 'बिपन पद', केवल इस बात को छोड़ कर