पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५४१

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परिशिष्ट ५ ( अनुवादक द्वारा जोड़ा गया ) [ वह अंश जो मूल के प्रथम संस्करण के द्वितोय भाग में , किन्तु जो न मूल के प्रथम संस्करण के प्रथम भाग और न मूल के द्वितीय संस्करण के किसी भाग के मुख्यांश में है—अनु॰1 रांका और बाँका राका पति बांका तिया बसे पुर पंडर' में उर में न चाह नेकु रीति कुछ न्यारिये । लकरीिन बीगेि करि जीविका नघी करें धर्ग झरि रूप दिये तासों यों जियारिये । विनती करत नामदेव कृष्ण देव सों की से दुख दूर कही मेरो मतेि हारिये । चले दिखा तन तेरे : मन भाऊ रहे बम छिप दोऊ थैली मग मांझ डरिये ३६३ आये दोऊ तिया पति पाछे बधू धागे स्वामी श्रोचक दी मग मां संपति निहारिये । जानी यों युवति जात क मन चलि जात याते बेगि संभ्रम सों धूरि वार्न डरिये । पूछी श्र कहां फियो भूमि में निरूरि तुम कही बही चात बोलो धनए विचारिये । कई मोको राका पै। बांका आज देखी द्वीरें सुनि प्रभु बोले बात सांवी है हमारिये ३६ई ॥ नामदेव हारे हरि देव कही औरै बात जमै दादगात चौ ल करी ५ मूल पाठ में चुण्डरपुर' है । किन्तु यइ वही नगर है जिसका प्रश्न go ४८ (के प्रथम संस्करण की द्वितीय जिल्द का पृष्ठ-अ॰में उठ चुका है । अतमैंने यहाँ समान हिज्जे प्रहण किए है ( अब Pandarpur, न कि Pundarpur---०)। २ तासी ने इसका क्षेत्र में अनुवाद किया है : रांका ने उससे कहा गुम मुझसे अधिक पूर्ण हो’1 किन्तु फुटनोट में शाब्दिक अनुवाद दिया है जितनी में फेंका नहीं हूं उतनी तुम ज्ञों का अधिक हो ।-—अनु०