पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५४२

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परिशिष्ट ५ [ ३८७ सकेरये । अभये दोऊ चीनिबे को देख इक टौरी देरी है टू मिली पावे तेड हथ नहीं छेरिये । तब त प्रगट श्याम लायो यों लेवाइ घर देखि मूढ़ फोरा कौ. ऐसे प्रधू : फेरिये । विनती करत जोरि अंग पट धारी भारी बोझ परो लियो पीर मात्र हेरिये २६५ ।' १ दे’ भतमाल टोक’ (नवल किशोर , लखनऊ, १८८३ ई०, प्रथम संस्करण ? मैं ‘टीका राकाबांका की' । मूल झप्पय न तो तासी ने दिया हैं और न इस ‘भक्तमाल सटीक' में है।-अनु० . सो द्वारा फ्र व में दिए गए अनुवाद और इसमें कोई अंतर नहीं है : अंतर केवल गये और पथ का है । .) : ...।