पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५४७

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२ हिंदुई साहित्य का इतिहास तिलक बिलक किये किलकि कै की बड़े बंधु ल खि लीजिये ॥ तुपति बुलाइ की हिये हरि भाय भर ठरे तेरे भाग आंच सेवा फल लीजिये । गयो रे महल मां टझल लगाये लोग लागे होन भोग जिय शंका तन छीजिये । मांगें बार बार बिंदा राजा नईि जान देत आति अकुलाय कही स्वामी घन दीजिये । दे के भांति सो पठाये संग मानस आवौ पहुंचा तब तुम पर रीझिये ।' पूछे नृप नर कोऊ तुम्हूरी न सरवरि है जिते आये साधु ऐसी सेवा नहिं भर्ती है । स्वामी जू सों नातो कहा कहो हम स्वाईि हाहा राखिये ट्राइ यह बात आति नई है । दूते क टौरे ग्रुप चाकरी में तड़ां इन कियोई निगारु मार डा आज्ञा दई है । राखे हम हिल जानि ले निदान हाथ पाव वाही के ई शान हम अब भरि लई है !. फाटि गई भूमि सब ठग वे समाइ गये भये ये चक्षित दौर स्वामी जू मै आाये हैं । कही जिती बात सुनि गत गात फोषि उठे हाथ पांव मोड़े भये ज्यों के स्यों सुझाये हैं । अचरज दोऊ नृप पास जा प्रकाश लिये अि ये एक मुनि आये वाही ठौर धाये हैं । पूरे बार बार शीश पायन में बारि रहे काहे वे उघारि कैसे मेरे मन भाये हैं । राजा आति अरगही को स त बोलि निपट अमोल यह संतन को भेश है । के पकार क तक उपकार करें ढ* रीति अपनी ही सरत सुदेश है । साधुता न तर्जे क’ जैसे ट दुष्टता न यही जान ली मिलें रसिक नरेश है । जान्य ज नाम ठाम रही इहां बलि जांव भयो में सनाथ प्रेम भकि भई देश हैं ॥ गयो जालि वाइ दयाद क्लि राजाति यों किया ले भिलाय आप रानी ढिग लाई है । म यो. एक भाई वाो भई याँ भौजाई सती कोऊ अंग कादि कोऊ कृदि परी चाई है सुनतः ही प बंधू निपट अचंभ भी इनको न मय फरि कहि ससुझाई है । प्रीति की न ति यहूं बड़ी भिप्रीति अहो छूटे तन जने प्रिया प्राण त्रुटेि जाई है । १ यह कथा जोसेफ की कथा की प्रतिच्छाया प्रतीत होतो है ।