पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५४८

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परिशिष्ट ६ [ ३४३ ऐसी एक श्राप कवि राजा सों यहीं नै के जावौ बाग स्वामी ने देखीं प्रीति को निपट भिचारी बुरी देत मेरे गरें छुरी तिया ठ मान करी ऐसे ही प्रतीति को । श्रानि कः आप पाये कही याही भांति आइ टिग सिया देखि लो ढिगई रीति को । बोली भक्त वधू अ वे तौ हाँ बहुत नीके तुम कहा औौच ही पावत दाँ भोति को : भट्ट लाज मारी पुनि पुति फेरि के भारी दिन बीत गये कोऊ तब तब वही कीनी है । जानि प्रई भक्त व चाइल परीक्षा लियो की अजू पाये सुनि तजी देह भीनी है । भयो मुख श्वेत रानी राजा आाये जानी यह रची चिता जरी मति भई मेरी हीनी है । भई सुधि श्राप को झ आये बेगि दौरि इहां देखो मृत्यु प्राय तूप कही मरी दीनी है ।॥ बोल्यो तुप आबू मोहि तई बनत आश्र सब उपदेश लै के धूरि में मिलायो है । कल्यौं हु भांति ऐवे अबतन शांति किईं गाई अष्टपदी सुर दियो तन ज्यायो है । लाजन को मायो राजा चाहै अपघात कियो जियो नहीं जात भक्ति तेश न आायो है । करि समाधान निज ग्राम नाये किंदु त्रिल्स जैतो कलू सुन्यों यह परचौ से गायो है । देवमुनी सौत ही अठारह कोस आश्रम सदा अलान करें धर्ण योग बाढ़ की भयो तन वृद्ध तक खड़े नहीं नित्य नेम गेम देखि सारी निशि ही सुखदाई को 1.आवो जनि ध्यान करौ करो जनि हैठं ऐसी मानी नहीं ग्राऊ में । जंान* कैसे थाई को 1 फूले क्षेत्र

  • जघ कीजियो प्रतीति मेरी भई ‘बही भांति से वे अब लीं।

सुहाई को ?' १ ‘भक्तमाल' के मूल छटपय को टोका तासो ने किसकी टीका से लौी है, यह उन्होंने नहीं लिल खा। उपर्युक्त अंश प्रियादास वैत ‘भकिरस बोधिनी 'ठीक' से लिया गया है। उसमें और तासो द्वारा दिए गए अंश में मौलिक सांम्य तो है, किन्तु विस्तार और अनुवाद की दृष्टि से उपक अनुवाद शब्दशः नहीं है ।-—अनु०