पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५५०

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परिशिष्ट ७ ठ ३७. भेद - शीर्षक रचमा का, ब्रजभाखा में, ‘आनन्द फ्यूशारा' (Py- shara) शीर्षक के अंतर्गतअनुवाद हो चुका है, और बुलन्द शहर से १८६५ में प्रकाशित हो चुका है । उनसे संबंधित ‘भक्तमाल' का लेख इस प्रकार है : J कलियुग धर्मपालक प्रगट आचारज शंकर सुभट 1 उतश्टंघल आंज्ञान जिते आनईश्वरवादी । वौध शतक जेन और पाखंड है जादी ! विमुखनि को दियो दंड ऐंचि सनमारग न दें। सदाचार की सीव विश्व कीरतईि बखायें । ईश्वर अंश अवतार महैिं य्यदा माड़ी अघट । कलयुग धर्मपालक प्रगट आचारज शंकर सुभट । टीका शिव के आशिक ग्रवतार, संकर, द्रविड़ ब्राह्मणशिवशम ‘के पुत्र थे । जब वे बाल के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई । ६ जब वे पाँच वर्ष के थे, उनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ थाठ वर्ष की " अवस्था में उनकी शिक्षा प्रारंभ हुई, और शीन ही अपने , से गोविन्द स्वामी, की भाँति विद्वान् भी हो गए । जब वे बारह वर्ष के , ' हुए“वे दिग्विजय के लिए निकले । पहले वे बद्रिकाश्रम गए । वहाँ उंनकी ब्यास से भेंट हुई। उन्होंने इस मुनि की पवित्र व्रतियों की टीका की थी, और उन्होंने वह उन्हें दिखाई | व्यास प्रसन्न हुए, और उनसे कहा : 'तुम्हारी अवस्था वास्तव में सोलह वर्ष की है; अच्छा, - १ १८६६ के प्रारंभ का भाषण ।. . ३ जे० लौंग, ‘१८६७ का डेस्क्रिप्टव कैलगर, पू० ४० .3 ब्राह्मण दो बड़ी शाखाओं में विभाजित हैं : द्रविड या द्रविड़और गौड या गौड़, और इन शाखाओं में से हर एक में पाँचपाँच जातियाँ है ।