पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५५१

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३६ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास मैं तुम्हें सोलह वर्ष और देता हूं। इस प्रकार तुम बतीस वर्ष पृथ्वी पर रहोगे । ' तत्पश्चात् वहाँ से वे मएड न मिश्र के यहाँ गए । बहाँ उनका इस प्राचार्य से शतार्थ हुआ किन्तु डएन मिश्र की पत्नी, जो सरस्वती का अवतार थी, उनके शास्त्रार्थ में निर्णायक थी उसने दोनों के गलों में एक-एक पुष्प-माला डाल दी, और उनसे कहा : जिसकी माला पहले सूख जायगी बही पराजित मान लिया जायगा : शास्त्रार्थ करते समयमएडन मिश्र के गले की माला सूख गई । तब संकराचार्य ने चिल्लाकर कहाः तुम मेरे शिष्य बनो ।' मण्डन मिश्र की पत्नी ने कहाः ‘वे केवल साधे हैं, उनका दूसरा अर्ध भाग में हूं ।' वे उस समय तक तुम्हारे शिष्य नहीं हो सकते जब तक मैं तुमसे पराजित न हो जाऊँ।’ तत्पश्चात् मएडन मिश्र की पत्नी से शास्त्रार्थ हुआ, किन्तु वह उन्हें ‘रसशास्त्र' पर ले आई । किन्तु संकर अभी बालक और . सरल ब्रह्मचारी थे, और वे ‘रस-शास्त्र’ से अनभिज्ञ थे। इसलिए शस्त्रार्थ की तैयारी करने के लिए उसने उन्हें एक मास दिंया । तब संकर उठे, उन्होंने एक मृत राजा का शरीर धारण किया और अपने शिष्यों से अपने वास्तविक शरीर की रक्षा करने के लिए कक्ष के एक महीने में जघ्र वे ‘रसशस्त्र का अध्यपम कर चुके, तो उन्होंने फिर अपने स्वाभाविक शरीर में प्रवेश कर लिया, और मण्डन मिश्र की पत्नी के साथ शास्त्रार्थ करने गए । उनकी विजय हुई, और उसके पति को अपना शिष्य बना लिया । २ ५ पढ़ो' के लिए हम से ‘आ' कहते हैं । २ ‘का ग्रंथ '; मेरे विचार से, वहो जो ‘झोक-शास्त्र' है । ३ यह भली भाँति समझा जा सकता है कि यह रनिवास को रानियों के साथ पति कां कार्य पूर्ण करने और ‘सशाहको ब्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने की शक्ति थी । .. । ४. इस भय से कि कोई उसे जलान दे, और साथ ही वे उसे फिर धारण कर सकें।