पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५५३

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३८ ! हिंदुई साहित्य का इतिहास संकर इस स्थान से उठेऔर अपने पितामहगुरु गौड़पाद के पास गएजिन्हें उन्होंने बहू प्रन्थ दिखाया जिसकी उन्होंने रचना की थी । पितामह पाठ सुनकर, प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी स्वीकृति दे दी । वधू ाँ से वे कश्मीर गए । इस प्रदेश के पंडितों ने उनसे प्रश्न पूछे जिनके उन्होंने उत्तर दिए । तत्पश्चात् वे सरस्वती स्थान’ सरस्वती का निवास-स्थान--नामक जगह गए और सिंहासन पर बैठने की इच्छा प्रकट की । किन्तु उन्हें एक आकाश-बाणी सुनाई दी, जिसने कहा : 'तुम सिंहासन पर बैठने योग्य नहीं हो, क्योंकि तुमनेसांसारिक आनन्द चखा है ।३१ उन्होंने उत्तर दिया : ‘नहीं, मैंने इस शरीर से सांसारिक यानन्द नहीं चखा ।’ इस उत्सर से प्रसन्न हो कर, उन्हें सिंहासन पर बैठने की आशा दे दी गई । अपने अनुयायियों की अनुमति से, वे बस्तुतः उस पर बैठ गए । उन्होंने दिग्विजय की श्रौर बत्तीस वर्ष की अवस्था प्राप्त की । अब वे अपने वास्तविक घर चले गए । दासनामी (Disnौंmis) नामक संन्यासियों की स्थापना उन्हीं के द्वारा हुई । ऐसा प्रतीत होता है क एक शोर सेकर या शंकर थे जिन्होंने हिन्दुस्तानी में लिखा है । मेरे स्वरप मित्र एफ़० लॉ नर ( Falco ner ) के चित्र-संग्रह पर, सdर के नवघ के वकील, मीर अफ़ज़ल अली द्वारा लिखित पठ के आधार पर, इस लेखक को एक ग़ज़ल का अनुवाद इस प्रकार हैं : । १ क्यांकि वास्तव में यह केवल, उनके द्वारा पुनर्जत्रि त, मृत राजा के शरीर से था, कि शु कर ने जनानखाने की स्कियों के साथ संसर्ग किया था। २ अर्थात‘अपने वास्तविक (नवास-स्थान, चिर तन jनवासस्थान (आजसू) को। 3 एच० पन्ना विलन‘पशियाटि रिसनें', 'ज० १७१७२ तथा बाद के पृष्ठ