पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५५४

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परिशिष्ट ७ उन सभी मनोवांछित वस्तुओं को जो दुनिया में पाई जाती हैं, मैंने सारहोन पाया । चिकित्सक ने प्रेम की बीमारी की कोई दवा नहीं निकाली, मैंने वास्तव में इस रोग को दुसाध्य पाया है । यदि कोई अपने प्रेम का सुखपूर्ण अन्त चाहता है तो उसे धैर्य और उत्सर्ग से काम लेना चाहिए । इस कठोर हृदय मूर्ति से दया अपरिचित है; अपने हृदय की घटिका की प्रबल ध्वनि व्यर्थ जाती है । मैं ब्रूमे और हरम में बूम आया हूं, जिन्तु, इच्छा रहने पर भी, क्या मुझे दिल का कावा मिल सकता है ? हे शंवर, तन्त्र क्या तू , चिंना बदनामी मोल लिएप्रेम के यानन्द का रस प्राप्त कर सकता है ?