'भारत के लोकप्रिय उत्सवों का विवरण'[१] में देखा जा सकता है। यही नाम उन गीतों को भी दिया जाता है जो इस समय सुने जाते हैं––गाने जिसका एक सुन्दर उदाहरण पहली जिल्द, पृ॰ ५४९ में है। 'होली' नाम का गीत प्रायः केवल दो पंक्तियों का होता है, जिसमें से अंतिम पंक्ति उसी चरणार्द्ध से समाप्त होती है जिससे कविता प्रारंभ होती है। लोकप्रिय गीतों में उसके उदाहरण मिलेंगे।
अब, यदि ब्राह्मणकालीन भारत को छोड़ दिया जाय, और मुसलमानकालीन भारत की ओर अपना ध्यान दिया जाय तो मुसलमान काव्यशास्त्रियों के अनुसार[२], सर्वप्रथम हम हिन्दुस्तानी काव्य-रचनाओं, उर्दू और दक्खिनी दोनों, को सात प्रधान भागों में विभाजित कर सकते हैं।
- १. वीर कविता (अल्हमासा)।
- २. शोक कविताएँ (अल्मरासी)।[३]
- ३. नीति और उपदेश की कविताएँ (अल्अदब बन्नसीहत)।
- ४. शृंगारिक कविता (अल्नसीब)।
- ५. प्रशंसा और यशगान की कविताएँ (अल्सना व अल्मदीह)।
- ६. व्यंग्य (अल्हिजा)।
- ७. वर्णनात्मक कविताएँ (अल्सिफ़ात)।
पहले भाग में कुछ क़सीदे[४], और विशेष रूप से बड़ी ऐतहासिक कविताएँ जिनका नाम 'नामा'––पुस्तक[५]––और 'क़िस्सा'––या पद्यात्मक कथा है, रखी जानी चाहिए। उन्हीं में वास्तव में कहे जाने वाले
- ↑ ज़ूर्ना एसियातीक', वर्ष १८३४
- ↑ इन विभाजन का विस्तार डब्ल्यू॰ जोन्स कृत 'Poëseos Asiaticae commentarii' में मिलता है।
- ↑ अल्मरासी, मरसिया शब्द का, जिसकी व्याख्या और आगे की जायगी, 'अल्' सहित, अरबी बहुवचन है।
- ↑ इस नाम की विशेष प्रकार की कविता की व्याख्या मैं आगे करूँगा।
- ↑ केवल एक प्रधान रचना उद्धृत करने के लिए, 'शाहनामा' ऐसी ही रचना हैं।