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हिंदुई साहित्य का इतिहास

इतिहास रखे जा सकते हैं जिनके काव्यात्मक गद्य में अनेक पद्य मिले रहते हैं। पूर्वी कल्पना से सुसज्जित यही शेष इतिहास हैं जिनसे निस्संदेह ऐतिहासिक कथाओं का जन्म हुआ (जो) एक प्रकार की रचना है (जिसे) हमने पूर्व से लिया है।[१] इन पिछली रचनाओं के प्रेम सम्बन्धी विषयों की संख्या अंत में थोड़े-से क़िस्सों तक रह जाती है जिनमें से अनेक अरबों, तुर्कों, फ़ारस-निवासियों और भारतीय मुसलमानों में प्रचलित हैं। सिकन्दर महान् के कारनामे, ख़ुसरो और शीरीं, यूसुफ़ और ज़ुलेख़ा, मजनूँ और लैला का प्रेम ऐसे ही क़िस्से हैं। अनेक फ़ारसी कवियों ने, पाँच मसनवियों[२] का संग्रह तैयार करने की भाँति, पाँच विभिन्न क़िस्सों को विकसित करने की चेष्टा की है जिनके संग्रह को उन्होंने "ख़म्सः', 'पाँच' शीर्षक दिया है। उदाहरण के लिए निज़ामी[३], जामी, ख़ुसरो, कातिबी (Kâtibî), हातिफ़ी (Hâtifî) आदि, ऐसे ही कवि हैं।

पूर्व में वीरतापूर्ण कथाएँ भी मिलती हैं; जैसे अरबों में इस प्रकार का अन्तर (Antar) का प्रसिद्ध इतिहास है, जिसमें हमारी प्राचीन वीर-कथाओं की भाँति, मरे हुए व्यक्ति, उखड़े हुए वृक्ष, केवल एक व्यक्ति द्वारा नष्ट की गई सेनाएँ मिलती हैं। हिन्दुस्तानी में 'क़िस्सा-इ अमीर हम्‌ज़ा', ख़ाविर-नामा' आदि की गणना वीर-कथाओं में की जा सकती है।


  1. प्रसिद्ध साहित्यिकों ने इस प्रकार की कथाओं का यह कह कर विरोध किया है कि 'ऐतिहासिक कथा' शब्द में ही विरोधी विचार है, किन्तु उन्होंने यह नहीं सोचा कि अनेक प्रसिद्ध कथाएँ, केवल नाममात्र के लिए ऐतिहासिक कथाएँ हैं।
  2. इस शब्द का अर्थ मैं आगे बताऊँगा।
  3. निज़ामी के 'खम्सः' में हैं––'मख़ज़न उल्असरार', 'ख़ुसरो ओ शीरीं', 'हस्त पैकर', 'लैला-मजनूँ', और 'सिकन्दर-नामा'।