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भूमिका

देशों में आलोचक, व्यंग्य ने सब बाधाओं को पार कर प्रकाश पाया है। परीक्षा करना, तुलना करना, वास्तव में यह मानवी प्रकृति का अत्यन्त सुन्दर विशेषाधिकार है। अथवा क्योंकि मनुष्य के सब कार्य अपूर्णता पर आधारित हैं, उन्हें आलोचक से कोई नहीं बचा सकता। कभी-कभी अत्यन्त साधारण आत्माएँ महानों के प्रति यह व्यवहार न्यायपूर्वक कर सकती हैं। यद्यपि कोई इलियड की रचना न कर सकता हो, तब भी होरेस (Horace) के अनुसार यह पाया जाता है कि :

Quandoque bonus dormitat Homerus.

उसी प्रकार राज्य के प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा की गई ग़लतियाँ, उनका स्थान ग्रहण कर लेने की भावना के बिना, देखी जा सकती हैं। दुर्भाग्यवश आलोचक की ओर प्रवृत्ति प्रायः द्वेष से, ईर्ष्या से तथा अन्य कुत्सित आवेगों से उत्पन्न होती है। जो कुछ भी हो, यूरोप की भाँति पूर्व में व्यंग्य प्रचलित है; एशिया का बड़े से बड़ा अत्याचारी इन बाणों से नहीं बचा। जैसा कि ज्ञात है, दो शताब्दी पूर्व, तुर्क कवि उवैसी (Uweïci) ने कुस्तुन्तुनिया की जनता के सामने तुर्क शासकों के पतन पर अपनी व्यंग्यवर्षा की थी, व्यंग्य जिसमें उसने सम्राट् से अपमानजनक विशेष दोषों से सजीव प्रश्न किए थे, जिसमें उसने अन्य बातों के अतिरिक्त बड़े वज़ीर के स्थान पर बहुत दिनों से पशुओं को भरे रखने की शिकायत की है।[१] और न केवल प्रशंसनीय व्यक्तियों ने, खास हालतों में, अनिवार्य


मध्ययुगीन शृंगारी कवि (troubadours) इसी अतिशयोक्ति में डूबे हुए हैं; वे समस्त प्रकृति को अपनी नायिका की अनुचरी बना देते हैं और ल फ़ौंतेन (la Fontaine) ने अपनी सरलता के साथ कभी-कभी चतुराई की बात कह दी है:––
'तीन प्रकार के व्यक्तियों की जितनी अधिक प्रशंसा की जाय थोड़ी है––'अपना ईश्वर, अपनी प्रेयसी और अपना राजा।'

  1. यह व्यंग्य डीत्‌ज़ (Dietz) द्वारा जर्मन में अनूदित हुआ है, और उसके कुछ अंश कारदोन (Cardone) कृत 'मेलाँज़ द लितेरत्यूर ऑरिएँ' (Mèlanges de littérature orient, पूर्वी साहित्य का विविध-संग्रह) की जि॰ २ में फ़्रेंच में अनूदित हुए हैं। श्री द सैसी (de Sacy) का 'मैगासाँ आँसीक्लोपेदी' (Magasin encycl. मैगासाँ विश्वकोष), जि॰ ६, १८११ में एक लेख भी देखिए।