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हिंदुई साहित्य का इतिहास

परिस्थितियों में व्यंग्य लिखे हैं; किन्तु कवियों ने, जैसा कि यूरोप में, इस प्रकार के प्रति अपनी रुचि प्रकट की है, जिसमें उन्होंने अपनी व्यंग्य-शक्ति प्रकट की है; और, यह ख़ास बात है, कि सामान्यतः लेखकों ने व्यंग्य और यशगान एक साथ किया है; क्योंकि वास्तव में यदि किसी को बुरी बातें अरुचिकर प्रतीत होती हैं, तो अच्छी बातों के प्रति उत्साह भी रहता है; यदि हमें कुछ लोगों के दोषों पर आश्चर्य होता है, तो दूसरों के अच्छे गुणों से उत्साह होता है। फ़ारसी के अत्यन्त प्रसिद्ध व्यंग्यकार, अनवरी (Anwarî), को इस प्रकार दूसरे क्षणों में यशगान करते हुए भी देखते हैं। भारतवर्ष में भी यही बात है : अत्यन्त प्रसिद्ध व्यंग्यकार कवियों ने, जिनके व्यंग्यों में अतिशयोक्तियाँ मिलती हैं, यशगान भी किया है; किन्तु व्यंग्यों में यशगान की अपेक्षा उनका अच्छा रूप मिलता है। उनके व्यंग्यों में अधिक मौलिकता पाई जाती है, और स्वयं उनके देशवासी उन्हें उनके यशगान से अच्छा समझते हैं। यह सच है कि हिन्दुस्तानी कवियों ने व्यंग्य सफलतापूर्वक लिखे हैं। उनमें व्यंग्य की परिधि उत्तरोत्तर विस्तृत होती जाती है। उन्होंने पहले व्यक्तियों को, फिर संस्थाओं को, फिर अन्त में उन चीज़ों को जो मनुष्य-इच्छा पर निर्भर नहीं रहतीं अपना निशाना बनाया है। यहाँ तक कि उन्होंने स्वयं प्रकृति की[१] उसके भयंकर और डरावने रूप में आलोचना की है। इसी प्रकार उन्होंने गर्मी के विरुद्ध, जाड़े के विरुद्ध,[२] बाढ़ों के विरुद्ध, और साथ ही अत्यन्त भयंकर और


  1. इसी तरह कभी-कभी परमात्मा की भी। रोमनों में भी जुवेनल (Juvénal) ने, बड़े आदमियों द्वारा अपनी शक्ति के दुरुपयोग का बुद्धिमानी के साथ विरोध करते हुए, भाग्य की गलतियों के विरुद्ध, अर्थात् ईश्वर, जो बुराई से अच्छाई पैदा करता है, के रहस्यों के विरुद्ध आवाज़ उठाते हुए समाप्त किया।
  2. दे॰, जि॰ १, पृ॰ १३६