पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/६४

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भूमिका

है कि चित्रण बहुत बोझिल रहता है और रीति-रस्म बहुत बढ़ा कर दिखाए जाते हैं, जब कि वे अधिकतर ख़ाली यूरोपियन दृश्य तक रहते हैं; किन्तु अंत में वे विविधता से संपन्न रहते हैं और पात्रों के चरित्र में कौशल रहता है। इस प्रकार के अभिनयों से पहले सामान्यतः नाच और इस संबंध में उत्तर में 'कलावन्त' और मध्य भारत में 'भाट', 'चारण' और