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भूमिका


'तज़्‌किरा'––'संस्मरण' या जीवनी। जिस प्रकार फ़ारसी में उसी प्रकार हिन्दुस्तानी में, इस शीर्षक की अनेक रचनाएँ हैं, और जिनमें कवियों के सम्बन्ध में, उनकी रचनाओं से उद्धरणों सहित, सूचनाएँ रहती हैं।

'तज़्‌मीन'––'सन्निवेश करना'। इस प्रकार का नाम उन पद्यों को दिया जाता है जो किसी दूसरी कविता का विकास प्रस्तुत करते हैं। उनमें परिचित पंक्तियों के साथ नई पंक्तियाँ रहती हैं। अपनी ख़ास ग़ज़लों में से एक पर सौदा ने लिखा है, और ताबाँ ने हाफ़िज़ की एक ग़ज़ल पर।

'तराना'। यह शब्द, जिसका अर्थ है 'स्वर का मिलाना', 'रुबाई' में एक गीत, विशेषतः दिल्ली में प्रयुक्त, के लिए आता है। इन गीतों के बनाने वालों को 'तराना-परदाज़'-'गीत बनाने वाले' कहते हैं।

'तश्बीब'। यह शब्द, जिसका अर्थ है 'युवावस्था और सौन्दर्य का वर्णन', एक शृंगारिक कविता का द्योतक है जिसे मुसलमान काव्य-शास्त्री प्रधान काव्य-रचनाओं में स्थान देते हैं।

'तारीख़'––'इतिहास'। इस प्रकार का नाम काल-चक्र-संबंधी पद्य को दिया जाता है, जिसमें, एक मिसरा या एक पंक्ति के, एक या कुछ शब्दों के अक्षरों की संख्यावाची शक्ति के आधार पर, किसी घटना की तिथि निर्धारित की जाती है। यह आवश्यक है कि कविता और काल-चक्र का उल्लिखित घटना से संबंध हो। ये कविताएँ प्रायः इमारतों और क़ब्रों पर खोदे गए लेखों का काम देती हैं, और सामान्यतः उन रचनाओं के अंत में आती हैं जिनकी ये तिथि भी बताती हैं। 'तारीख़' से कालक्रमानुसार वृतान्त, इतिहास, सामान्य इतिहास या एक विशेष इतिहास-संबंधी सब बड़े ग्रन्थ भी समझे जाते हैं।

'दीवान'। पंक्तियों के अंतिम वर्ण के अनुसार क्रम से रखी गईं ग़ज़लों के संग्रह को भी कहते हैं, और फलतः एक ही लेखक की कविताओं का संग्रह। किन्तु इस अंतिम अर्थ में ख़ास तौर से 'कुल्लियात' अथवा पूर्ण, शब्द का प्रयोग होता है।

भारतीय मुसलमानों के साहित्य में ग़ज़लों के संग्रह सबसे अधिक