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हिंदुई साहित्य का इतिहास

प्रचलित हैं। लोग एक या दो ग़ज़ल लिखते हैं, तत्पश्चात् कुछ और; अंत में जब उनकी संख्या काफ़ी हो जाती है, तो दीवान के रूप में संकलित कर दी जाती हैं, उसकी प्रतियाँ उतारी जाती हैं, और अपने मित्रों में बाँट दी जाती हैं। कुछ कवियों ने तो कई दीवान तैयार किए हैं; उदाहरणार्थ मीर तक़ी में छः लिखे हैं। दुर्भाग्यवश उनमें लगभग हमेशा एक से विचार रहते हैं, और कभी-कभी भाषा भी एक सी रहती हैं; साथ ही, कई सौ कविताओं के दीवान में नए विचार प्रस्तुत करने वाली या मौलिक रूप में लिखी गईं कविताएँ ढूँढ़ना कठिन हो जाता है।

'नुक़्ता'––'बिन्दु', 'सुन्दर शब्द', एक प्रकार का हरम का गाना।[१]

'फ़र्द' अर्थात् 'एक'। लोग 'मिसरा' भी कहते हैं।

'बन्द' का ठीक-ठीक अर्थ है 'छन्द' : जैले 'हफ़्त बन्द' में सात छन्द होते हैं। 'तर्ज़ी बन्द' अथवा 'टेकयुक्त छन्द', उस कविता को कहते हैं जिसमें विभिन्न तुक वाले, पाँच से ग्यारह पंक्तियों तक के, छन्द होते हैं, जिनमें से हर एक के अंत में कविता से बाहर की एक ख़ास पंक्ति[२] दुहराई जाती है, किंतु जिसके अर्थ का छन्द के साथ साम्य होता है, चाहे वह बिना पंक्तियों के अपने में पूर्ण ही हो। उसमें पाँच से कम और बारह से अधिक छन्द तो होने ही नहीं चाहिए।[३] 'तरकीब बन्द'––क्रमयुक्त छन्द, उस रचना को कहते हैं जिसके छन्दों की अंतिम पंक्तियाँ बदल जाती हैं। यह सामान्यतः प्रशंसात्मक कविता होती है[४]; कभी-कभी प्रत्येक छन्द के अंत में आने


  1. विलर्ड (Willard), 'म्यूज़िक ऑव हिन्दुस्तान', पृ॰ ९३
  2. इसका एक उदाहरण इस जिल्द के पृष्ठ ४४३ पर मिलेगा।
  3. न्यूबोल्ड (Newbold), 'Essay on the metrical compositions of the Persians' (फ़ारस वालों की छन्दोबद्ध रचनाओं पर निबन्ध)।
  4. इस प्रकार का एक उदाहरण मीर तक़ी की रचनाओं में पाया जाता है, कलकत्ते का संस्करण, पृ॰ ८७५, जिसका हरएक छन्द बदल जाता है। कमाल ने अपने तज़्‌किरा में हसन की एक कविता उद्धृत की है, जिसकी रचना १७ बन्दों या चार पंक्तियों के छन्दों में हुई है, जिनमें से पहली तीन उर्दू में और अंतिम फ़ारसी में, एक विशेष तुक में, है।