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भूमिका

वाली स्फुट पंक्तियों के जोड़ देने से एक ग़ज़ल बन सकती है। इस कविता के अंतिम छन्द में, साथ ही पिछली के में, कवि अपना तख़ल्लुस अवश्य देता है। इस संबंध में सौदा ने, फ़िदवी पर अपने व्यंग्य में, कहा है कि कवियों को पंक्तियों में अपना तख़ल्लुस तो अवश्य रखना चाहिए, किंतु असली नाम कभी नहीं।

'बयाज़', या संग्रह-पुस्तक (album)। यह विभिन्न रचनाओं के पद्यों का संग्रह होता है। आयताकार संग्रह-पुस्तक (album) को जिसमें दूसरों तथा ख़ास मित्र-बांधवों के पद्य रहते हैं विशेष रूप से 'सफ़ीना' कहा जाता है। अरबी के विद्वान् श्री वरसी (M. Varsy) ने मुझे निश्चित रूप से बताया है कि मिश्र (ईजिप्ट) में इस शब्द का यही अर्थ है, और वास्तव में एक बक्स में बन्द आयताकार संग्रह-पुस्तक का द्योतक है।

'बैत'। यह शब्द[१] 'शेर' का सामानार्थवाची है; और एक सामान्य पद्य का द्योतक है; किन्तु उसका एक अधिक विशेष अर्थ भी है, और जिसे कभी-कभी दो अलग-अलग पंक्तियों वाला छन्द कहते हैं, क्योंकि उसमें दो 'मिसरा' होते हैं। वह हिन्दुई के 'दोहा' या 'दोहरा' के समान हैं।

'दो-बैत', दो पंक्तियों, या चार 'मिसरों' की छोटी कविता को कहते हैं। 'चार-बैत' चार छन्दों के उर्दू गाने को कहते हैं।

'मन्‌क़बा', प्रशंसा। यह वह शीर्षक है जो किसी व्यक्ति की प्रशंसा में लिखी गई कुछ कविताओं को दिया जाता है।

'मर्सिया', 'शोक', अथवा ठीक-ठीक 'विलाप' गीत, मुसलमान शहीदों के संबंध में साधारणतः चार पंक्तियों के पचास छन्दों


  1. 'बैत' का ठीक-ठीक अर्थ है 'ख़ेमा', और फलतः 'घर', और उसी से एक ख़ेमे के दो द्वार हैं जिन्हें 'मिसरा' कहते हैं, इस प्रकार पद्य में इसी नाम के दो मिसरे होते हैं।