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हिंदुई साहित्य का इतिहास

में रचित काव्य। बहुत पीछे तथा अन्य स्थानों पर मैं इसका उल्लेख कर चुका हूँ।[१]

'मसनवी'। अरबी में जिन पद्यों को 'मुज़्‌दविज' कहते हैं उन्हें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी में इस प्रकार पुकारा जाता है। ये दोनों शब्द 'मिसरों' के जोड़ों से सार्थक होते हैं, और वे पद्यों की उस शृंखला का द्योतन करते हैं जिनके दो मिसरों की आपस में तुक मिलता ही है, और जिसकी तुक प्रत्येक पद्य में बदलती है, या कम-से-कम बदल सकती है।[२] इस रूप में 'वअज़' या 'वन्दनामे', उपदेशात्मक कविताएँ, किसी भी प्रकार की सब लम्बी कविताएँ और पद्यात्मक वर्णन लिखे जाते हैं। उन्हें प्रायः खण्डों या परिच्छेदों में बाँटा जाता है जिन्हें 'बाब'––दरवाज़ा, या 'फ़रल'-भाग कहते हैं। पिछला शब्द हिन्दुई-कविताओं के 'कांड' की तरह है।

'मुअम्मा'––पहेली, छोटी कविता जिसका विषय एक पहेली रहती है;[३] उसे 'लुग्ब़' भी कहते हैं।

'मुबारक-बाद'। बधाई और प्रशंसा संबंधी काव्य को यह नाम दिया जाता है। हिन्दुई में 'बधावा' के समानार्थवाची के रूप में उसका प्रयोग होता है।

'मुसम्मत', अर्थात् 'फिर से जोड़ना'। इस प्रकार उस कविता को कहा जाता है जिसके छन्दों में से हर एक भिन्न-तुकान्त होता है, किन्तु जिनके अंत में एक ऐसा मिसरा आता है जिसकी तुक अलग-अलग रूप में मिल जाती है, और जो क्रम पूरी कविता के लिए चलता है। उसमें


  1. इन विलाप-गीतों पर विस्तार मेरी 'Mémoir sur la religion musulmane dans l' Inde' (भारत में मुसलमानी धर्म का विवरण) में, और 'Séances de Haïdari' (हैदरी से भेंट) में देखिए।
  2. ये 'Ièonins' नामक लैटिन पद्यों की तरह है। अँगरेज़ी उपासना-पद्धति में इसी प्रकार के बहुत हैं।
  3. 'ग़ुलदस्ता-इ निशात' में इस प्रकार की पहेलियाँ बहुत बड़ी संख्या में मिलती हैं, पृ॰ ४४४।