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प्रस्तावना


"विजयी मुसलमानों के उस पर अपनी वर्णमाला लाद देने से उर्दू अरबी, फ़ारसी और कुछ तुर्की शब्दों के रंग से रंगी हुई वही भाषा है। वह न केवल अदालतों और मुसलमान परिवारों की ही भाषा हो गई है, किन्तु तमाम कुलीन हिन्दुओं की और उन लोगों की जिन्होंने शिक्षा प्राप्त की है, जब कि हिन्दी अपने सरल से सरल रूप में ब्रह्मा के उपासकों की अति निम्न श्रेणियों तक सीमित है..."

पहले संस्करण की भाँति, अपना कार्य सरल बनाने की दृष्टि से, प्रत्येक विशेष लेखक के संबंध में लिखने के लिए और साथ ही एक प्रकार का कोष बनाने के लिए मैंने अब की बार भी अकारादिक्रम का आश्रय ग्रहण किया है; किन्तु पहले संस्करण में जो उद्धरण और विश्लेषण अलग दिए गए थे वे इस बार मिला दिए गए हैं, केवल उन उद्धरणों को अब बहुत छोटा कर दिया गया है। इसी प्रकार मैंने 'प्रेमसागर' से कुछ नहीं दिया, जो तब से होलिंग्स (Hollings) और ऐड॰ बी॰ ईस्टविक (Ed.B. Eastwick) द्वारा पूर्णतः अँगरेज़ी में अनूदित हो चुका है। मैंने अब अफ़सोस द्वारा भारत के प्रान्तों का काव्यात्मक वर्णन भी नहीं दिया, जिसका १८४७ में एन॰ एल॰ बेनमोहेल (N.L. Benmohel) द्वारा 'Ten sections of a description of India' शीर्षक के अन्तर्गत अँगरेज़ी में अनुवाद हो जाने के बाद कोई महत्त्व नहीं रह गया; न तुलसीदास कृत 'रामायण' का आठवाँ कांड––वाल्मीकि कृत संस्कृत काव्य, जिसमें समान कथा और समान घटनाएँ हैं––क्योंकि प्रथम संस्करण के बाद इटैलियन और फ्रांसीसी में उसका अनुवाद हो चुका है। अंत में मैंने कुछ अन्य अंशों को अनावश्यक समझ कर उनमें काट-छाँट कर दी है। किन्तु जीवनी और ग्रन्थों के भाग की दृष्टि से यह संस्करण पहले संस्करण से बहुत बड़ा है, क्योंकि इसमें प्रत्येक में छः सौ से अधिक पृष्ठों की तीन जिल्दें हैं।

मैंने कथित लेखकों, विशेषतः जिन्होंने कविताएँ लिखी हैं, का उल्लेख काव्योपनाम या और भी स्पष्ट रूप में तख़ल्लुस शीर्षक के अंतर्गत किया है,