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हिंदुई साहित्य का इतिहास


आठवीं शताब्दी के प्रारंभ से मुसलमानों ने भारतवर्ष पर विजय प्राप्त करते हुए आक्रमण किया; १००० ईसवी सन् के लगभग, महमूद ग़ज़नी को हर जगह उज्ज्वल सफलताएँ मिलीं, और उस समय से नगरों में भारतीय भाषा में परिवर्तन उपस्थित हुआ। चार शताब्दी बाद, मुग़ल जाति का तैमूर हिन्दुस्तान आया, दिल्ली का शासक बना, और निश्चित रूप से १५०५ में बाबर द्वारा स्थापित शक्तिशाली साम्राज्य की नींव डाली। तब हिन्दी ने अपने को फ़ारसी के भण्डार से भरा, जो स्वयं उस समय तक अरब विजेताओं और उनके धर्म द्वारा प्रचलित अनेक अरबी शब्दों से मिश्रित हो चुकी थी। सेना का बाज़ार नगरों में स्थापित हुआ, और उसे तातारी नाम 'उर्दू' मिला, जिसका ठीक-ठीक अर्थ है 'फ़ौज' और 'शिविर'। हिन्दू-मुसलमानों की यह नई बोली प्रधानतः वहीं बोली जाती थी; साथ ही 'उर्दू की भाषा' (ज़बान-इ उर्दू) या केवल 'उर्दू' नाम मिला। इसी समय के लगभग, भारत के दक्षिण में, उन मुसलमान वंशों के अंतर्गत जो नर्मदा के दक्षिण में क्रमागत रूप में निर्मित विभिन्न साम्राज्यों का शासन करते थे, एक उसी प्रकार की भाषा-संबंधी घटना घटित हुई; और वहाँ हिन्दू-मुसलमानों की भाषा ने एक विशेष नाम 'दक्खिनी' (दक्षिण की) ग्रहण किया। मध्ययुगीन फ्रांस की 'उइ' (oíl) और 'ओक' (oc) की भाँति, इन दोनों बोलियों का प्रचार भारत में हो गया है, एक का उत्तर में, दूसरी का दक्षिण में, जहाँ-जहाँ मुसलमानों ने अपना राज्य विस्तृत किया। तो भी पुरानी हिन्दी का प्रयोग अब भी गाँवों में, उत्तर के और उत्तर-पश्चिम के प्रान्तों के हिन्दुओं में, होता है; किन्तु यद्यपि शब्दों के चुनाव में हिन्दी और उर्दू एक दूसरे से भिन्न हैं, वे वास्तव में, उचित बात तो यह है, कि अपनी-अपनी वाक्यरचना-पद्धति के अंतर्गत आंशिक दृष्टि से विभिन्न तत्वों से निर्मित, एक ही भाषा हैं, भाषा जिसे यूरोपियनों ने सामान्य नाम 'हिन्दुस्तानी' दिया है, जिसके अंतर्गत वे हिन्दुई और हिन्दी, उर्दू और दक्खिनी को शामिल करते हैं; किन्तु यह नाम भारतवासियों ने स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वे