की भाषा है। जिस प्रकार यूरोप के ईसाई सुधारकों ने अपने मतों और धार्मिक उपदेशों के समर्थन के लिए जीवित भाषाएँ प्रहण कीं; उसी प्रकार, भारत में, हिन्दू और मुसलमान संप्रदायों के गुरुओं ने अपने सिद्धांतों के प्रचार के लिए सामान्यतः हिन्दुस्तानी का प्रयोग किया है। ऐसे गुरुनों में कबीर, नानक, दादू, बीरभान, बख्तावर, और अंत में अभी हाल के मुसलमान सुधारकों में, अहमद नामक एक सैयद हैं। न केवल उनकी रचनाएँ ही हिन्दुस्तानी में हैं, वरन् उनके अनुयायी जो प्रार्थना करते हैं, वे जो भजन गाते हैं, वे भी उसी भाषा में हैं।
अंत में, हिन्दुस्तानी साहित्य का एक काव्यात्मक महत्तव है, जो न तो किसी दूसरी भाषा से हीन है, और न जो वास्तव में कम है। सच तो यह है कि प्रत्येक साहित्य में एक अपनापन रहता है जो उसे आकर्षणपूर्ण बनाता है, प्रत्येक घुष्प की भाँति जिसमें, एक फ़ारसी कवि के कथनानुसार, अलग-अलग रंगो बू रहती है।[१]भारतवर्ष वैसे भी कविता का प्रसिद्ध और प्राचीन देश है; यहाँ सब कुछ पद्म में है—कथाएँ, इतिहास, नैतिक रचनाएँ, कोष, यहाँ तक कि रुपए की गाथा भी।[२]किन्तु जिस विशेषता का मैं उल्लेख कर रहा हूँ वह केवल कर्ण-सुखद शब्दों के सुन्दर सामंजस्य में, अलंकृत पंक्तियों के कम या अधिक अनुरूप क्रम में ही नहीं है मैं उसमें कुछ अधिक वास्तविकता है, यहाँ तक कि प्रकृति और भूमि सम्बन्धी उपयोगी विवरण भी उसी में हैं, जिनसे कम या ग़लत समझे जाने वाले शब्द-समूह की व्याख्या प्रस्तुत करने वाले मानव-जाति सम्बन्धी विस्तार ज्ञात होते हैं। मैं इतना और कहूँगा कि हिन्दुरतानी