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हिंदुई साहित्य का इतिहास

कविता धर्म और उच्च दर्शन के सर्वोत्कृष्ट सिद्धान्तों के प्रचलित करने में विशेषतः प्रयुक्त हुई है। वास्तव में, उर्दू कविता का कोई संग्रह खोल लीजिए, और आपको उसमें मनुष्य और ईश्वर के मिलन-सम्बन्धी विविधरूपकों के अंतर्गत वे ही बातें मिलेंगी। सर्वत्र भ्रमर और कमल, बुलबुल और गुलाब, परवाना औौर शमा मिलेंगे।

हिन्दुस्तानी साहित्य में जो अत्यधिक प्रचुर हैं, वे दीवान, या ग़ज़ल-संग्रह्म, समान गति की एक प्रकार की कविता (ode) और विशेषतः दक्खिनी में, पद्यात्मक कथाएँ हैं। इन्हीं चीजों का फ़ारसी और तुर्की में स्थान है और इन तीनों साहित्यों में अनेक बातें समान हैं। हिन्दुस्तानी में अनेक अत्यन्त रोचक लोकप्रिय गीत भी हैं, और यही भाषा है जिसका वर्तमान भारत के नाटकों में बहुत सामान्य रूप से प्रयोग होता है।

निस्संदेह यहाँ हिन्दुस्तानी रचयिताओं द्वारा व्यवहृत उर्दू और हिन्दी के विभिन्न प्रकारों के संबंध में कुछ विस्तार की मुझसे आशा की जाती है।

हिन्दुई में केवल पद्यात्मक रचनात्रों के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिलता। सामान्यतः चार-वार शब्दांशों (Syllable) के ये छन्द दो लययुक्त चरणों में विभाजित रहते हैं। किन्तु साधारण गद्य, या लययुक्त गद्य, में भी रचनाएँ हैं, जैसे न्दुिस्तानी में, किन्तु अधिकतर प्रायः पद्यों से मिश्रित जो सामान्यतः उद्धरणों के रूप में रहते हैं।

यदि हम, श्री गोरेसियो (Gorresio) द्वारा 'रामायण' के अपने सुन्दर संस्करण की भूमिका में उल्लिखित, संस्कृत विभाजन का अनुगमन करें, तो हिन्दो-रचनाएँ चार भागों में विभाजित की जा सकती हैं।

१. 'आख्यान', कहानी, किस्सा। इनसे वे कविवाएँ समझी जानी चाहिए जिनमें लोकप्रिय परंपराओं से संबंधित विषय रहते हैं, और कथाएँ पद्यात्मक, कभी-कभी, फ़ारसी अक्षरों में लिखित, छंदों के रूप में, रहती हैं, यद्यपि लय मसनवियों की भाँति हर एक पद्य में बदलती जाती है।