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भूमिका


२. 'आदि काव्य', अथवा प्राचीन काव्य। उससे विशेषतः 'रामायण' समझा जाता है।

३. 'इतिहास', गाथा, वर्णन। ऐतिहासिक-पौराणिक परंपराओं में ऐसे अनेक हैं, जैसे 'महाभारत' तथा पद्यात्मक इतिहास।

४. अंत में 'काव्य', किसी प्रकार को काव्यात्मक रचना। इस वर्गगत नाम से, जो पूर्वी मुसलमानों के नज्म़ के समान है, हिन्दुई की वे सभी छोटी-छोटी कविताएँ समझी जाती हैं जिनकी मैं शीघ्र ही समीक्षा करूँगा।

तीसरे भाग में पद्य-मिश्रित गद्य की कहानियाँ रखी जानी चाहिए, विशेषतः कहानियों और नैतिक कथाओं के संग्रह, जैसे, 'तोता कहानी' (एक तोते की कहानियाँ), 'सिंहासन-बत्तासी' (जादुई सिंहासन); बैतालपचीसा' (बैताल की कहानी), आदि।

राजाओं को सत्य बताने के लिए, पूर्व में, जहाँ उनकी इच्छा ही सव कुछ होती है, उसका खण्डन करना एक कठिन कार्य है। इसी बात पर कवि दार्शनिक सदी का कहना है कि यदि सम्राट् भरी दुपहरी को रात बताए तो चाँद-तारे देखना समझ लेना चाहिए। तब उस समय इन कोमल कानों तक सत्य की आवाज़ पहुँचान के लिए कल्पित कथाओं का आश्रय ग्रहण किया जाता हूँ। इस दृष्टि से नैतिक कथाओं की उत्पत्ति हुई, जिनसे बिना किसी ख़तरे के अत्याचारियों को शिक्षा दी जा सकती है, जिसे वे कभी-कभी लाभान्वित हुए हैं। देखिए फ़ारस के उस राजा को जिसने अपने वज़ीर से, जो पशुओं की बोली सुन कर नाराज़ होता था, पूछा कि दो उल्लू, जो उसने साथ-साथ देखे, आपस में क्या बातचीत करते हैं निर्मिक दार्शनिक ने उत्तर दिया, 'वे कहते हैं कि वे आप के राज्य पर मुग्ध हो गए हैं; क्योंकि वे आप के अत्याचारी शासन में प्रतिदिन उपन्न होने वाले खँडहरों में अपनी इच्छा के अनुसार शरण ले सकते हैं।' वास्तव में हम देखते हैं कि पूर्वी कथाओं में राजनीति सर्वोच्च स्थान