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हिंदुई साहित्य का इतिहास


'छन्द', छः पंक्तियों में रचित कविता। तुलसी कृत 'रामायण' में उनकी एक बहुत बड़ी संख्या मिलती है। लाहौर में उसका बहुत प्रयोग होता है।

'छप्पै', या छः वाली, एक साथ लिखे गए 'अष्टपई' (aschtpai) नामक शब्दशों से निर्मित छः चरणों की कविता, जिसमें तीन छन्द बनते हैं। यह उस चरण से प्रारंभ होता है जिससे कविता का अन्त भी होता है।

'जगत वर्णन', शब्दशः संसार, पृथ्वी का वर्णन। यह हिन्दुई की एक वर्णनात्मक कविता है जिसके शीर्षक से विषय का पता चलता है।

'जत' [यति] होली का, इसी नाम के संगीत-रूप से संबंधित, एक गीत।

'जयकरी-छन्द', अथवा विजय का गीत, एक प्रकार की कविता जिसके उदाहरण मेरी 'हिन्दुई भाषा के प्राथमिक सिद्धान्त' (Rudinments de la Hangue hindoui) के बाद मेरे द्वारा प्रकाशित 'महाभारत’ के अंश में मिलेंगे।

'झूल्ला', अथवा झूला झूलना, झूते का गीत, वैसा ही जैसा हिण्डोला है। अन्य के अतिरिक्त वे कबीर की रचनाओं में हैं। एक उदा हरण, पाठ और अनुवाद, गिलक्राइस्ट कृत 'आरिएंटल लिंग्विस्ट, पृ० १५७, में है।

'टप्पा', इसी नाम के संगीत रूप में गाई गई छोटी श्रृंगारिक कविता। उसमें अन्तरा अन्त में दुबारा जाने वाले प्रथम चरणार्द्ध से भिन्न होता है। गिलाक्राइस्ट ने इस कविता को अँगरेज़ी नाम 'glee' ठीक ही दिया है, जिसका अर्थ टेक वाला गाना है। पंजाब के लोकप्रिय गीतों में ये विशेष रूप से मिलते हैं, जिनमें हिन्दुई के 'कौ' और हिन्दुस्तानी के 'का' के स्थान पर 'दौ' या 'द्रा' संबंध कौरक का प्रयोग अपनी विशेषता है।[१]

  1. दे०, मेरी 'Rudinents de la langue hindoui' (हिन्दुई भाषा के प्राथमिक सिद्धान्त), नोट ३, पृ० ६, और नोट २, पृ० ११ ।