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हिंदुई साहित्य का इतिहास


'राग-सागर'–रागों का समुद्र—एक प्रकार की संगीत-रचना (Ron- dean) को कहते हैं जिसका प्रत्येक छन्द एक विभिन्न रात में गाया जा सकता है, और ‘राग-माल'—रागों की माला—चित्रित किए जाने वाले रूपकों सहित विभिन्न रागों से सम्बन्धित छन्दों के संग्रह को।

'राम पद', चरणार्द्धो के अनुसार १५-१५ शब्दांशों का अंद, राम के सम्मान में, जैसा कि शीर्षक से प्रकट होता है।

'रास', कृष्ण-लीला का वर्णन करने वाला गान होने से यह नाम दिया गया है।

'रेखतस', कबीर की कविताएँ, जिनका नाम, हिन्दुस्तानी कविताओं के लिए प्रयुक्त, फ़ारसी शब्द रेखत:—मिश्रित—से लिया गया है।

'रोला-छन्द'। बाईस लंबी पंक्तियों की, इस नाम की कविता से, 'महाभारत' के हिन्दुई रूपान्तर में, 'शकुन्तला' का उपाख्यान प्रारम्भ होता है।

'विष्णु पद', विकृत रूप में 'बिधन पद', केवल इस बात को छोड़ कर कि इसका विषय सदैव विष्णु से सम्बन्घित रहता है, यह ‘डोमरा' की तरह कविता है। कहा जाता है, इसके जन्मदाता सूरदास थे। मथुरा में इसका ख़ास तौर से व्यवहार होता है।

'शब्द' या 'शब्दी', कबीर की कुछ कविताओं का ख़ास नाम।

'सड़्गीत', नृत्य के साथ का गाना।

'सिख', और बहुवचन में 'सख्यां', कबीर की कुछ कवितानों का विशेष नाम। कृष्ण और गोपियों के प्रेम से संबंधित एक गीत को 'सखी सम्बन्ध' कहते हैं।

'समय', कबीर के भजनों का एक दूसरा विशेष नाम।

'साद्रा', ब्रज और ग्वालियर में व्यवहृत गीत, और उसकी तरह जिसे 'कड़खा' कहते हैं।