पृष्ठ:हिन्दी निरुक्त.pdf/१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१२:हिन्दी-निरुक्त
 

और हो गया। जठराग्नि द्वारा जीर्यमाणता में 'पचने का प्रयोग होता है-'जो जल्दी पच जाय, सो खाओ।' साधारण आग के द्वारा पकाने के अर्थ में यहाँ शब्दान्तर चलता है-'पकाना ।' 'पकाना' का कर्मक रूप है 'पकना ।' यानी हिन्दी ने 'पच्' के मूलार्थ में 'पका' धात रखी-'च' को 'क' बनाया और 'आ' अन्त में लगाया। यों 'पका मूल धातु हुई, जिसका कर्म-कर्तृ रूप 'पक' हुआ। 'राम दाल पता और दाल पक रही है।' 'पकाना' प्रेरणार्थक रूप नहीं है. जैसा कि अनेक वैय्याकरणों ने समझ रखा है। 'पकाना' हिन्दी की मुल धातु, जिसकी प्रेरणा 'पकवाना' जौर जिसका 'कर्म-कर्तृ' रूप 'पकना। पर ये सव व्याकरण की बातें हैं । हमें निरुक्त शास्त्र से सम्वद्ध चर्चा करनी है। ____ कहने का तात्पर्य यह है कि देश-काल आदि के भेद से जैसे शब्दों के रूप में विकास होता है, उसी तरह उनके अथों में भी। आगे के अध्यायों में शब्द-विकास के उपर्युक्त चारों भेद और पाँचवाँ अर्थ- विकास विस्तार से समझाया जायेगा। इसलिए यहाँ इतना पर्याप्त है।