पृष्ठ:हिन्दी निरुक्त.pdf/११

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दूसरा अध्याय

२-वर्णागम ___ अब हम निस्त का विपन ब्योरेवार रखगे, जिसमें पहले 'वर्णागम' को हो ले रहे हैं। आगम (आमदनी) पहले, फिर और कुछ देखा जाता है। कदाचित् इसीलिए. आगम' को माङ्गलिक समझ कर निरुताचार्यों ने इसे शीर्षस्थान दिया है। उच्चारण-सोकर्य, माधुर्य- सम्पादन आदि के लिए किसी शब्द में कोई वर्ण बाहर से आमिलता है; यही 'वांगम' है । वांगम, वर्ण-लोप आदि पर विचार करने से पहले हम यदि एक वार वर्ण-स्थिति पर विचार कर लें, तो अच्छा होगा। कारग, वर्गों की जो श्रेणियाँ, स्थान-प्रयत्न आदि के साम्य से, निर्धारित की गयी हैं, उनका विशेष महत्त्व है। सम्पूर्ण भाषा सृष्टि में वर्ण-व्यवस्था का विशेष महत्त्व है। इस देश में ही वर्ण-व्यवस्था देखने में आती है। इतर देशों में यह बात नहीं। अके बाद 'व' आ जाना क्या अर्थ रखता है? एक स्वर और दसरा व्यंजन ! जैले एक रथ मेंक ओर घोडा और दसरी ओर बड़ा गधा (खच्चर) जोत दिया गया हो; या बैल और भैंसा ! हमारे यहाँ ऐसा नहीं है। स्वर अलग, व्यंजन अलग। फिर स्वरों तथा व्यंजनों में भी अवान्तर स्थिति-विशेष। ये सबमिल कर भाषा का सृजन करते हैं। ३-वर्ण या अक्षर वर्ण' अक्षर को कहते हैं । अक्षर शब्द का वह अंदा, जिसके टुकड़े न हो सके। 'कपड़ा' एक पद है, जिसे हिन्दी व्याकरणों में लोगों ने 'शब्द' कहा है। इस पद के मोटे रूप से तीन टुकड़े किये जा सकते हैं-क, प, डाः मुश्म दृष्टि से विचार करने पर छह टुकड़े हो जाते हैं-'क् अप अड़ आ' : परन्तु कु, प् तथा ड़ का उच्चारण हम नहीं कर सकते, जब तक उनमें अ, आ, या इ, ई आदि कोई स्वर न लगा