पृष्ठ:हिन्दी निरुक्त.pdf/३३

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हिन्दी-निरुक्त:३५
 

मिल कर एक दीर्घ 'आ'पोर-पोला । परन्तु 'इवेत का सेन हो कर फिर को ' नहीं हुआ; क्योंकि सेल' हिन्दी में एक प्रसिद्ध शस्त्र वाचक शब्द है। न क्षेत्र का बेत हो कर फिर ___ पंजाबी में न को वर्गीय तृतीय अक्षर (द) में बदलने की प्रवृत्ति है-~करता-करदा, पीना-दीदा खाना-खाँदा कह सकते हैं कि द को होता क्यों न समझा जाय? या क्यों न माना जाय कि पजावी 'करदा', 'पांदा आदि का हो हिन्दी में करता', 'पीता' आदि हो गया है ? संस्कृत में भी तो का त् होना प्रसिद्ध है न ? इसका उत्तर यह है कि ऋर-विकास में मनमानी तो चन्देगी नहीं। हमें देखना होगा कि करता' और 'करदा में प्राचीनतर प्रयोग कौन सा है.। स्पष्ट ही करता, पीता. खाता आदि कृदन्त कियाएं संस्कृत के 'क्त' ('त') प्रत्यय पर हैं, जो वहाँ वर्तमान-सामीप्य में होता है। 'द' कोई क्रिया-विभक्ति या प्रत्यय वैसा है ही नहीं। इस विषय को व्रजभाषा-व्याकरण के क्रिया-प्रकरण में हम ने बहुत विस्तार के साथ समझाया है। सो, मूल रूप 'करता' आदि ही हैं, जिन के रूप पंजाब में 'करदा' आदि हो गये हैं; और आगे करना' आदि भी। पंजाबी में 'त्' का न होना भी देखा जाता है। संस्कृत में भी 'त्' तथा 'द' का 'न्' के रूप में बदलते रहना साधारण वात है। 'इतना, उतना, कितना पंजाब में 'इन्ना, उन्ना, किन्ना बन जाते हैं और स्त्री-लिंग में--इन्लो. उन्नी, किन्तीत' के 'अ' का लोप और उस (त्) को 'न्। संस्कृत में टवर्ग के मेल में तवर्ग को भी हवन हो जाता है। पर हिन्दी या पंजावी में ऐसा नहीं है। 'इको वैसे स्थल में 'ण होने के बदले न्' ही होता है। जैसे- 'मुन्नी । 'मुन्नी' शब्द पहले पंजाब में चला; वाद में 'मुन्ना' बना-चला; फिर ये दोनों शब्द चलते-चलते हमारे युक्त प्रान्त, मध्य प्रान्त और बिहार पहुँचे; किंबहुना, आज 'मुन्नी-मुन्ना' सम्पूर्ण भारत में कुदते फिरते हैं। आप कहेंगे कि इसमें प्रमाण क्या है कि ये शब्द पंजाब से चले ? और चर्चा भी की चल रही है। ध्यान रहे। ठीक है। प्रमाण दिये जायेंगे। चर्चा भी इ की ही है। वैसे चर्चा तो 'त्' की थी; पर 'त' को 'न' होने की बात आ गयी, जिस से 'इ' के 'त्' होने की याद आ गयी-मुन्नी-मुन्ना सामने