पृष्ठ:हिन्दी निरुक्त.pdf/३५

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हिन्दी-निरुक्त:३७
 

शब्दों में प्रथम को तृतीय। ____ब. छ, उ, ५ आरकको हिन्दी में समान ग्रहण करने नहीं देखा जाता है। आप हग कि. वाहन-सह, सब-नह आदि योग प्रत्यक्ष हैं: पर आप रहते हैं कि कुछ होता है नहीं। नर में निवेदन है कि वर्ण-विकार नहीं होता है: एक वर्ग मरे वर्ग के कप में नहीं बदल जाता है: बस इतना हो हम ने कहा है। कुछ को नही होना । कुछ में तो वर्ग-लोप आदिम है: हो. वह कई-बोरकेप्रका में स्पष्ट किया जाना कि मुझन आइ में क-विकार नहीं. वर्ग-लेप है । 'ख' में हु, भोकाडा है मामा । ऋविन-विना कर नष्ट हो गया और ह रह गया: जैन किल्ली परे आदि पर लोहे की चादर चढ़ा दी जाय और कालान्तर में लकड़ीसद-माल कर वह चादरभर रह जाय: काम भी वैनानी देनो नो बहनो कहें किनकडीउड गयी. लोहे कीजदर रनरी और चने मिना कर गोवनी' बना ली। फिर दिले अलग कर लियना नोक नायगा कि ईरह गये.बने अन्दग कर लिये गये। यह न कहा जायगा विमोचनी' के गह बन गये। इसी तरह मुन्द्र, नख' आदि में रख' के 'क का लोप हो गया और मधुर 'मन के साहचर्या में वह हि) मानुनासिक भी हो गया। प बन गये-मुहू. न हूँ ! 'नहूँ 'लख की अपेक्षा कितना कोमल और मधर बाब्द बन गया ? तभी तो नई बी छनक मेहँदी सूदन देहु' जैसे शृङ्गारात्मक स्थलों में प्रयुक्त होता है। टूटे नवरद केहरी' जैसे स्थलों में नई का प्रयोग न होगा। मेर के झुंझनियाँ नहीं बाँधी जातीं। वनोपाल मग-ौने आदि का प्राडार है। मो.ये सब साहित्यमात्र की बातें हैं कि कैसे सब्दों का प्रयोग कहां होना चाहिए । यहाँ अधिक चर्चा की गुंजाइम नहीं। हाँ, यह तो समझ ही गये होंगे कि 'नग्लू' की अपेक्षा न मधुर क्यों हो गया है ! स्पष्ट हैं कि अक्षर ऐसा महाप्राण है, जो साधारण 'क', 'ग' आदिको', 'घ' जमा कठोर बना देता हैं। वह तो 'मूह तथा 'नहूँ मडटा हो हआ है। फिर कोनलना आने का कारण क्या है? कारण है उसका सानुनासिक हो जाना। अनुनासिक ने मिठास पैदा कर दिया है। और, यद्यपि 'ह.' अल्पप्राणों को महाप्राग बना देता है; और उन में मिल कर यह अधिक कर्कग हो जाता है। कोई जबर्दस्त जब किसी निर्बल को भी अपने साथ कर लेना है. तो उस को शक्ति और आवाज बढ़ जाती