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हिन्दी-निरुक्त  : ५५
 

साहब ने हिन्दी के 'वीच' दाव्द की उत्पत्ति मध्य झाब्दले बतायी! भाषण समाप्त होने पर मैं अपने मित्र 'डाक्टर' साहब से जब मिला, तो कहा कि 'मध्य' से 'बी' की उत्पत्ति हो नहीं सकती। 'म को, 'ध' को अयवा 'य' को कभी 'ब' के हर में बदलने अन्यत्र भी देखा है क्या? उस समय तो डाक्टर साहब अपनी बात पर अड़े रहे; पर 'सम्मेलन केन्द्रई-अधिवेशन पर मिले. नी बोले-- "बाजवी जी, आप की वह वात ओक है ! 'बीच की उत्पत्ति मध्य से नहीं है। इस विषय में प्रेमी-अभिनन्दन-गुन्म में एक विज्ञान का लेख प्रकानित हुआ है; आप ने देखा होगा।" मैंने अपने आप को अन्य समझा कि उस विद्वान के उस लेख को देखकर डाक्टर साहब ने मेरो बान मान तो ली। हाँ, वह लड़का' शब्द आया कहाँ से ? कहीं से आया होगा ! सब की उत्पत्ति आप न जान सकें. नो कोई बड़ी बात नहीं है। साधारण बात है। कोई भी सत्र मन्दों की पूरी जानकारी का दावा नहीं कर सकता। परन्तू, कहीं न कहीं से उत्पनि बताती ही है: यह सनक ठीक नहीं। किसी के वाप को आप न जानते हों, तो उसे किसी दूसरे का लड़का बता देंगे क्या? अरे, यह 'लड़का' तो बार-बार आ कूदता है। है कौन, जो उस तरह चीजों के लिए ललकता, ललचता और लपकता फिरता है। ‘ला ला' की धुन लगाये रहता है यह 'लल्ला' ! क्या 'ललचना' और 'ललकना में वर्ण-विकार से एकता है ? क्या 'ल' का 'ड' और 'ड' हो जाना सुप्रसिद्ध नहीं है ? तो, 'ललक' से 'लड़क' असम्भावित है क्या? 'लड़क में ही हिन्दी की पुं- विभक्ति 'आ' लगकर लड़का बना है क्या ? परन्तु व्रज में लड़का नहीं होता । वहाँ 'छोरा चलता है। अब आप 'छोरा' के रामचक्कर में न पड़ें और आगे बढ़े। हम स्वर-विकार बनला रहे थे । व्यंजन को भी स्वर होते देखा गया है ! सो, यह व्यंजन-विकार है। नयन का नैन हुआ, दो पीढ़ियों या सीढ़ियों में ।-य का 'इ हुआ और 'अइ मिलकर ऐनैन। इसी तरह वैन' भी है..-वचन वयन-इन-.--बैन । पिकनी में इसी की चहक है । पर विधुवैली समेत सुभाय सिधाये में 'बैनी का विकास 'वचन' से नहीं है ! चन्द्रमा मीठा बोलता नहीं है; देखने में ही अच्छा लगता है। सो, यह 'नो' 'वदन' से है-विधु-बदनी । 'बदन के 'व'